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________________ ૪૨ अभयदेवसूरि- विरहउ अe संभासिउ सासि नासि संस्यहूँ । safar frovar वयणामऍण सई ॥ १०० इय सव्व विवाचिया सपरिवार कमेण | fare पत्थु पति पवं वीर - जिणेण ॥ १०१ विरहि गामहि नगरहि [ पुरहि । ] पट्टणहि । ठाविषि नर- सुर- तिरियाँ नाहि दंसणहि । उसवदत्त दिउ माहणि देवाद तह | रायस्य दिक्खेषिणु देविणु सुह सिवह || १०२ अह पत्तउ पाधापुर हस्थिपाल - निवस्स । वासवासु करे जिणु किल मालहिं करणस्स || १०३ * कत्तिय मास अमावस साइहि खीधा रउ । सुर-नर-कोड मणेहि समणिहि परियरिउ । पज्जका सण-संठित पच्छिम-निसिद्दि लहु । धम्मक पत्र सिद्धि वीर पहु ||१०४ जिण दिणनाहरू अत्थमणि लोहारू । फुरियड तित्थय- तारयहि भग्गु सुमग्ग- पयारु ॥ १०५ 11 कि सारु सुरदिवि [2] बहु !,,. नंदीसरि स - विमाणिहि किड जिण-भवण-महु | तिदुषण भुवणुज्जोयणु विकिर गयउ । दीवज्जो पर्याप्त निर्वाहि पवत्तिय ॥ १०६ तीस बास बसि गिधि अनु बारस उमृत्यु तीस केवलि विहरियड पुणु जिणु सिधु कयत्थु ॥ १०७ इथ कल्लाणय कित्ता किवीरा जिण । वर जिणेसरसूरिहि "सीसि सुवियि । अभयदेव - सिरि सूरिं जिण गुणले भावियह। होइ पढत सुणत कारण सिवसुहहः || १०८ ॥ वीर-वरिय समत्तं ॥ +8 25 १००.३ सॉमिउ तासिउ १०० ४ वयणामपुण १०२.२ ठावे विदंसनिहि १०२. ३ वाणदु १०४२ परिस्थिित १०४ २. पज्जकासुण १०५१. अस्थमणे जगह मे। हंकरू १०६.१ विश्व ठत्रहुँ १०७.१ अन्नु बारसच्छ उमत्थु
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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