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अभयदेवसूरि- विरहउ
अe संभासिउ सासि नासि संस्यहूँ । safar frovar वयणामऍण सई ॥ १००
इय सव्व विवाचिया सपरिवार कमेण | fare पत्थु पति पवं वीर - जिणेण ॥ १०१
विरहि गामहि नगरहि [ पुरहि । ] पट्टणहि । ठाविषि नर- सुर- तिरियाँ नाहि दंसणहि । उसवदत्त दिउ माहणि देवाद तह | रायस्य दिक्खेषिणु देविणु सुह सिवह || १०२
अह पत्तउ पाधापुर हस्थिपाल - निवस्स । वासवासु करे जिणु किल मालहिं करणस्स || १०३
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कत्तिय मास अमावस साइहि खीधा रउ । सुर-नर-कोड मणेहि समणिहि परियरिउ । पज्जका सण-संठित पच्छिम-निसिद्दि लहु । धम्मक पत्र सिद्धि वीर पहु ||१०४ जिण दिणनाहरू अत्थमणि लोहारू । फुरियड तित्थय- तारयहि भग्गु सुमग्ग- पयारु ॥ १०५
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कि सारु सुरदिवि [2] बहु !,,. नंदीसरि स - विमाणिहि किड जिण-भवण-महु | तिदुषण भुवणुज्जोयणु विकिर गयउ । दीवज्जो पर्याप्त निर्वाहि पवत्तिय ॥ १०६
तीस बास बसि गिधि अनु बारस उमृत्यु तीस केवलि विहरियड पुणु जिणु सिधु कयत्थु ॥ १०७
इथ कल्लाणय कित्ता किवीरा जिण । वर जिणेसरसूरिहि "सीसि सुवियि । अभयदेव - सिरि सूरिं जिण गुणले भावियह। होइ पढत सुणत कारण सिवसुहहः || १०८
॥ वीर-वरिय समत्तं ॥
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१००.३ सॉमिउ तासिउ १०० ४ वयणामपुण १०२.२ ठावे विदंसनिहि १०२. ३ वाणदु १०४२ परिस्थिित १०४ २. पज्जकासुण १०५१. अस्थमणे जगह मे। हंकरू १०६.१ विश्व ठत्रहुँ १०७.१ अन्नु बारसच्छ उमत्थु