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________________ अभयदेवसूरि-विरहउ जिण-जलहरु वसुधारहि संवच्छरु जा वुटु । पडु-पडय-रव-गज्जियउ निवाषिय-धरवठु ॥८३ अह सव्वे वि सुरासुर जिण-पुरि ओयरिय । कलसहि सहसहि न्हावहि" जिणु भत्ती भरिय । अह चंदप्पह-सीयहि सिंहासणि ठियह । छत्तइँ धारइँ वाहहि चामर-जुगु जिणह ॥८४ सिविओखित्ती नर-सुरहि घोसयि जय जय सद् । मगल-तू-इँ ताडियइ जायउ जण-समई ॥८५ . वउविह-सेन्न-समन्निड [वंदिउ ?] वैदिणिहि । लोयण-सहस-पलोइयउ पणमिउ सिर-सएहि । अंगुलि-सहमहि दरिसिउ इच्छिउ मण-सएहि । नायसंडि वणि आगउ संगउ बंधहि ॥८६ इदि कलयलि वारियइ सामाइउ पडिवन्नु । अह कयलोयह मुणिवाहि मणपजउ उत्पन्नु ॥८७ मांगसिरासिय-दसमिहिं उत्तर-फागुणिहि । दिक्ख जाय जिण-वीरह जग-चिंतामणिहि । अह विहरइ भधारउ सारउ तिहुषणह । भाविय समरिउ बधव बंधयु जिय-गणच ॥८८ सूलपाणि जे बोहियउ अगणिषि निय-तणु-दुक्खु । चंडक्कोसिय-फणवाहि तह दिन्नउ सुर-सोवखु ।।८९ जे संगम-सुर-रमणिहि माणु विणासियउ । जि सिर चक्क-निवायणु सुरयणु कंपियउ । कन्नहि कील पवेस ति गोवि न रूसिया । सल्लुद्धरणि ण वेज वि जे किर सियउ ॥९० सो जिणु जभियगाम सरि उजुवालिय ना पासि । हेठइ साल-महातरुहु सुह-झाणदिठल आसि ||९१ ८३ २ निच्चाविय ८. १ उयरिय ८४.४ च्छेत्तहच्छेत्तई ८५.१ सिविउखित्ति ८५.२ जण-समुद्८६.२ सिर सएहिं ८६.३ मणसुपहिं । ८८.३ अह विह विहरहे ८९.१ जे ८९.२ सुरसोक्ख ९०.३ पवेस नि गो०
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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