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________________ ३८ अभयदेवसूरि विरह नासह दोसा संगु निरु जसु उद भुवणे वि । दोसंसु वि तह जिण-रविहि को सक्के कवि ॥६५ वंदेवि जिण हरि हरिसेण पुणु । पद धू समुर-बंधुर-गंध-गुणु । अट्ठ मंगल fafees रुपय- तंदुलेहि । अह वल्लई फुल्लजलि मुहल - महुयऍहि ||६६ फुल्ल सुरपहु - पेल्लियह ँ पहु पय- पासि पद्धति । रायसेससि - रमण (?) तारय सेवहि पंति ॥६७ दु दुहि -सह- समाउलु आउलु पडिरविह्नि । जय-जय-रप-संग्गिड वग्गर- सुरयणहि । वर उ विष्फारवि फारच जिण - गुणइ । अह बत्तीस निदसिय संसिय- नाड्य ॥६८ अच्चुय-बहु जिद्द जिणु हवा तिह सेसा विकमेण । हा पूयहि संयुहि चच्चिय रामंचेण ॥ ६९ ges मला हेल पुन्तु सुमूलिम (१) । णं किउ तिहुयण- खोहण सोहणु जिणु तिलउ | सुरगिरि-भालि लयाला मणहर थणहरहूँ | afe - रवि जयणइँ पिउनहूँ सायर अबरहूँ ॥७० सुर-तारय-मय सोहर जिणवर बंदु | यह पच्छालिय- दिसिवल जण-मण-णायणानं ॥ ७१ पुणु कर - संपुडि लइयs नीयत नियय हरि । जणणिहि बंदि अपिउ जपिउ पम हरि | होहि महीहर - जीविउ जलहि-जलाउ तुहुँ । जिण भवियाहं भवन्नव - हत्थालंबु लहु ॥७२ जपद सुरषद सुरगणहु कुणइ जो जिणह अभत्ति । अग - मंजरि जेम तहि फुट्ट सीसु तड त्ति ॥ ७३ ६५.२ मंकेइ ६२.३ विलाई ६६.४ मुहलि महुयरपहिं ६७२ समिष्णण ६८.२ सुरयणेहिं ६८.३ विकारवि ७० २ भोहणु जिणु ७१.१ मट्ठियउ ७३.२ अक्कम मंजरि
SR No.520762
Book TitleSambodhi 1983 Vol 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages326
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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