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अभयदेवसूरि- विरइउ
दसलय - लोयणु तेण तर संजायक सुरराउ | sessive इति हि पेष्छिास्सामि वराउ ||४७
तिहुणु सलु वि इदि जोइयउ | पहु सामत्थु जिदिह नन्नह जाणियउ । हा दढ - मूर्ति मिच्छा जे मइँ मन्नियत । सयल जिविंद होंति समाउ सत्तिय ॥४८
जिण - सामत्थि विआणिय आगय बहु-गुण- भत्ति । जिण मज्जणु सव्वायरेण सुरवर करहिं झडति ॥४९
पदम कि
मज्ज दे सामियहि ।
अवुह (?) मणिमय पमुहिं कलसेहिं सहसे हि । हरिण घणा घुसिम्मीमहि । Hola - सिद्धय तित्थ य पाणियहि ||५०
अहिसिंचहि जिण कप्पतरु हेल्लइ जलु मेल्लंत । हत्थ इच्छिय वर - फलइँ नं सुरवर इच्छत ॥५१
तर्हि वायति चविहु अहिणयहि [...... ?] सुर गायंति चउबिहु भूसिउ जिण-गुणिहि । जय जय स उ जहि गुंजइ थुइ सयई । हरिसुरिसिं मेल्लहि सीहनिनाय ॥५२
जिण लावन्न - मह सेवई नयण-दलेहि पिचि । तर मय-परवस सुर - विसर णञ्चहिं भुय उन्भेवि ॥५३
मगलु गउ जिह गज्जहि ँ हय देस सुयहि ँ । भूमि देत चड रहु जिह घणघणई' | बिज्जुन्जोउ करेति य देति य जल-परिसु । ae aoris ितिर छिंदहि सामरिसु ॥ ५४
अहिणव - हरिसवसुदर ते सुर किं न करेंति । अन्न व जण निय- कन्जे पर परिसय च्चिय होंति ॥५५
४७.२ पेच्छिामि ४८.१ उहिं ४८.२ प ४८.४ जिणेदह... सत्तिउय ५०.१-२
गणु इंदे अवुह मणिमय पमुहेहे कलशे हे महमे हे सामियहिं । ५१.२ तं ५२.१ अहिपेयहं । ५२.३ जुंजह ५३.१ पिपवि । ५३.२ नई...
वहि