________________
अभयदेवरि-विरइड
तुम्ह नमोत्थु जिणेलर-णेसर-पुत्वदिसि। तुम्ह नमेोत्थु जिणिंद-सुचंदिम-सुद्ध-निसि' ।।२८
कि बीज जं वज्जहरु जिणवर-जणणि णमे। जो किर रेहिणि धरणि जिह जिण-चिंतामणि देव ॥२९
'हउ धज्जाहिउ आइउ सग्गह जिणवरह । न्हवण-निमित्त सुचित्तु न तुम्हे भउ करह ।' सपिउ अप्पिउ जंपिउ जिण-पडिधिंब तहि । कय ओसोयणि इंदें तिसिलहि राणियहि ॥३०
कप्पधि अप्पा पंच हरि जिणु कर-कमलिहिलेइ । जिणे-गुण-गायण-हरिय मणु पुणु सुरगिरि-सिरि णे ॥३१ धरइ जिणेसरु एकिं एकिं छत्त-तिउ। तिहि चामरहि सुचालइ चालइ पास थिउ । अनि धउ धरंतउ धाव जिण-पुरउ । इय गुरु-गउरवि रूवा हरि बहुअ विकिरइ ||३२ गयण-सरोधरि जोगह-जलि जिण-केमरु सुर-पत्त । जिण-गुण-गेय दुरेह-झुणि सुरयणु णं भयवतु ।। ३३ सुरगिरि-लिहरि पराइयउ धाइउ सुर-निवह । हरि हरि-विट्ठरि संठिउ अंक-निविठ्ठ-पहु। अच्चुय-पमुह सुरेसर किं-करउँ रवहि । जिणवर-हवगउँ णिउणउँ पउणउँ ते करहि ॥३४ सह जिण-भत्तिए काउमण अनु लही पहु-आण | से कर किंकर हरिस-पर किं न करहिं तुहुँ आपण ॥३५ अह खोराइ-समुदह रुदह मह-दहह । मागह-पमुहह तित्थह सच्छह सरवरह । गंगा-पमुह-महानइ-निवहहँ पाणिय हैं। तह मही बेसाई कमला' आणिय ॥३६ सायर-सरियहँ लेवि जलु भारि भंगुर-गत्तु । सुरयण अब्भ-समूहु जिह कंचणगिरि संपत्तु ।।३७
२८.४ नमोथ ३०.१ हउ ३०.३ पडिविवु तहिं ३०.४ उस्मोयणि ३२.२ चालेई । मेखि 67 वपुषरंतउ ३२.४ विकरइ ३३.१ जोण्ह ३३.२ रेह ३५.१ लद्धी पडु आणे | ३६.२ पमुहहं तितुह सस्थह ३६.३ महानइ पमुहानई निष.