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अभयदेवसरि-विरदेउ
उर
हरि किंकर-वरु वाहरिवि वियरइ आणी इ दु । निजउ जिणवरु रायहरि नीय न होति जिणिदु ॥९ खत्तियकुडम्गामि पहाणह खत्तियह । सिद्धत्थह सिद्धत्थह सिद्ध-नरीसरह । आण-पसाहिय-रज्जह वज्जह अरि-गिरिहि । नियय समिद्ध-बुद्धिं (१) अहरिय-हरि-सिरिहि ।१० तिसिला सील-विसाल तहि लडह समुभव (? समुजल) रूप देविंद इदाणि पिव जाया जीवियभूअ ॥११ आसोयासिय तेरसि उत्तर-फागुणिहि । णीयउ जिणु गभंतरि खत्तिय-सामिणिहि । बहु सुहु हरिणगवेर्सि पेसिउ सुरवाहि । जिव रषि-मंडलु अरुणिहि पुत्व-महादिसिहि ॥१२ चोइस-सुमिणिहि सूरयउ तिसिलहि गब्भि वसंतु । अहिणदिज्जइ सुरवरहि जणयहुँ पणउ जणंतु ॥१३ तो तं निव-कुलु वद्धा बंधुर-सिंधुरिहि । कोसहि कोट्ठागारहि संदण-साहणहि । पुत्त-कलत्तहि भत्तेहि सारहि किंकरहि । पाउसु वेल्लिउ जिह जिह फल -फुल्लिहि पल्लविहि ॥१४ जिण-चिंतामणि-संगमेण किं किं जं न लहति । पहु जिणनाहु अचिंतु पुणु चिंतामणि पभणंति ॥१५ चेत्तह सिय तिहि सेरसिहि उत्तर-फगुणिहि दस दिसि उम्जोईतउ जायउ खत्तिणिहि । जिह उदयाचल-कुहरह मडल दिणयरह । भषियकमल-परियोहणु सोहणु रय-तमह ॥१६ सासा दिसाकुमारियउ आगय जिणह सगासि । कथ-जिण-मंगलकोऊभउ गायहि निण-गुण-रासि ॥१७ बत्तीसहि वि सुरिंदहँ चलिउ वरालणड । ओहि पउजहि जाणहि जिणवर-मन्जणठ । तो ते मणिमय-कंकण रणक्षण-रव-मुहर । जिणु संथुणहि समाहिं भावे (?) बे वि कर ॥१८
९.१. आणि । आणंदु ॥ ९.२. जिर्णदु १०.४. दुर्दिठ ११.२. पिह, चूअ १३.२. सुखरेहि १६.२. देिसि जोईते। १७.२. कोउअउ १८.२ उहि