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सिरि अभयदेवसूरि-विराउ
वीर-जिणेसर-चरिउ
॥ ॐ नमो वर्धमानाय || वीर-जिणेसर-वर-चरिउ अइसय-सयहिं महंतु । आयन्निज्जउ कन्न-सुहु सुयणहु वन्निज्जंतु ॥१ नासिय-दोसासंगह अगणिय-गुण-गगह । असुर-सुरेसर- विदह बंदह कह (१) जिणह । उम्मूलेइ अमंगलु मंगल कुणा लहु । सुहु संपय परिपोसा झोसइ दुह-निषहु ॥२ पाणयकप्प-पइट्ठियउ पुप्फोत्तरु सुविमाणु । छेदवि वर विच्छड जिणु, जगि ओइन्नु तिनाणु ॥३ माहणकुडग्गामि पहाणह माहणह । निय-कुलकमेहि निरयह बिरयह रय-भरह । उसहदत्त सुनामह मन्नह पुरवरह । धण-कम्महि कयसेवह वेय-वियारणह ॥४ . लीला-सील-सलोणि था जिय-सुरसुदरि-विंद । चंदह च दिम जेम नहि गेहिणि देवाणंद ॥५ पुप्फोत्तरु-तरु-सिहरह आइउ हंसवा । देवाणंद सुणलिणिहि गमि सरोइ नह । सरल-मुणाल-सुबाहहि कय-दल-लोयणिहि । सिय-आसाढह छट्टिहि उत्तर-फागुणिहि ॥६ इंसिय घोहस-सुमिण-गणु दिणवासी (?) तहिं तुठ्ठ । अब्भम्भंतरि भाणु जिह भासुर-माणु पसत्थु ॥७. पत्थंतरि चलियासणु सामिउ सुर-गणह ।। गम्भाहाणु वियाणइ ओहिं जिणवरह । लहु अब्भुट्ठिषि तुदउ मउडि फुसिय घर । सिरि-कय-करयल-संपुडु वंदा वज्जहरु ॥८.
अशुद्ध मूल पाठ-२.१. नाभिय २.४, ज्झोमइ ३.२. विच्छेद ४.१ पहावेह ५.२. नहिं ६.३. चल-लोवणिहिं ७.१. तुच्छु ७.२ भासुर भाणु ८.२. उहिं