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आ. जिनहर्षसूरि-विरचित
मतिसागर मुहंतउ कीयउ जी, कोढी नर सय सात । रोग गमी ठाकुर कीया जी, मोटानी सी वात रे ॥४८॥मा. नव राणी पटरागनी जी, पांच सखी संजोग । चवदइ नारी भोगवइ जी, देव तणां सुख भोग ॥४९॥मा० देई नगारउ चालीयो जी, चंपा ऊपरि राय । अजितसेन नासी गयउ जी, खमि न सक्यउ भडवाय ॥५०॥मा० पोतानइ भुजबल लीयउ जी, बाप तणउ जिणि राज । कहइ जिनहरख वखत वडउ जो, वखतइ सीधां काज ॥५१॥मा०
दूहा
अजितसेन चारित्र लीयऊ, पातक-रोह विचारि । तप संजम' आराधतो, करइ अबंध बिहार ॥५२॥
चंपा नपरी आवीय, वांद्या नृप श्रीपाल । घरम-देसणा सांभलि, भाखड़ इम भूपाल ॥५३॥
२० ढाल : गीता छदनी'
पूरव 5 भव मुनि भाखउ मुझ तण उ, किणि करमइ सुख दुख पाम्यउ घणउ। नगर हिरण्यपुर श्रीकंत नरवरु, श्रीमती राणी रूपई सुदरु । रूप सुदर जाणि अपछर, राय आहेडउ करई । राणी कहई प्रि जीव हणंता, जीव दुर्गति संचरइ । . व्यसनी न मानइ काउ केहनउ, सात सय चाकर ग्रही । । एक दिवस आखेटक गयउ नृप, साधु दीठउ वन माहि ॥५४॥
काराग भउ रे देखी इम कहई, ए कुण कोढी रे वनमाहे रहा । कोढी कहि कहि सह हांसी करई, करम10 चीकणां बांध्या इणि परई । इणि परह वली इक दिवस जायइ, एकलउ नरनाथ ए। साधु देखी नदीकंठई, नाखीयउ ग्रहि बाथ ए। देखी दुखीयउ नदी माहे, काढीय उ करुणा करी । घरि आवी11 राणी आगलइ, निज 12क्रित कमाई उचरी ॥५५॥
1 द्रोह B2 संयम B3 धर्म B 4 हांसिये में अन्य ढाल भी लिखी है: (१) सुणी सुणी जंबू सोहम एहनी, (२) देसी तुटकत सेरीसा नी B5 पूर्व B6 कहै डोकर B 7 दरगति सांचर B 8 से B 9 बीठ3 B 10 कर्म A 11 वाद्य A 12 आवि B 13 कृत B
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