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________________ लघु श्रोपालरास दृहा राजा विस्मय पामीयउ, मिलीयउ सहु परिवार । नृप श्रीपाल तेडावीयउ, नाटक1 वृद तिवार ||३७।। नाटक आव्यउ नाचिवा, पहिरी सुंदर घाट । एक नारि साजइ नहीं. ते विणि न पडई नाट ।।३८॥ तेह भणी हाकी करी, उठाडी मन भंग । नाचती दूहउ कहयउ, मनमां थई विरंग ॥३९॥ किहां मालव किहां संखपुर, किहां बब्बर किहां नह । सुरसुंदरि नच्चावीयई, दैव मल्या मरह ॥१॥ १९. ढाल : साधुजी भलइ पधारया आज ५ देसी सुरसुंदरी सहु उलखी जी, पूछ रोती मात । मांडीनइ सहुयह कही जी, निज *वीतगनी वात रे ॥४०॥ मातजी कर्म करइ ते होइ, कीघउ केहनउ नवि हुवह जी । माण म करिज्यो कोई रे ॥४॥मा. परणी चाली सासरई जी, विचिमई ऊठी धाडि । साथ सहु नासी गयो जी; कत गयउ मुझ छांडि रे ॥४२॥मा०। कोली मुझनई लेई गयो जी, वेची जई नेपाल । तिहां विणजारह संग्रही जी, वेची तिणि ततकाल रे ॥४॥मा०। बब्बर वेश्या संग्रही जी, कला सीखावी तेण । महकालई मुझनई लीधी जी, नाटक कला वसेण रे ॥४४॥ मयणसेना परणाविनई जी, नाटकमां मुझ दीघ । ईहां नाटक करतां थकांजी, आवी लाज प्रसीध ॥४५॥मा०। धन मयणा मुझ बहिनडी जी, पाल्यउ निरमल सील । सील प्रभावह इणि लह्या जी, धण कण कंचण लील ॥४६॥मा० नृप श्रीपाल10 तेडावीयउ जी, तिहां अरिदमण कमार11 । । आपी ते सुरसुदरी जी, आपी रिद्धि अपार रे ॥४७॥मा०। 1 नाटिक A 2 देवे B 3 पूरै B 4 वागतनी चात A 5 सह B 6 विणिजारै 87 तेणि A8 मैंणा B9 शील B 10 पालइ तेडीयउ B 11 कुमारि B Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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