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________________ आ. जिनहर्षसूरि-विरचित काठ 1सरीखी करी रे, जीवाडी श्रीपाल । नवपदना समरण थकी रे, बइठी थई ततकाल ॥२५॥रा। महीसेन नृप' कुअरी रे, परणावी धरि प्रेम । तिलकसुदरी गुणसुदरी रे, पुन्य थकी सुख खेम ॥२६॥रा।' कटक सुभट लेई करी रे, ऊतरीयउ उजेणि । राजा गढ-राहउ करी रे, रहोयउ अवसर एणि रे ॥२७॥रा० राति पडी अधरति उथइ रे, माय मिलण श्रीपाल । नारि सहु लेइ करी रे, *पहृतउ घर ततकाल ॥२८॥रा० विनय करी सीपउ कही रे, बार उघाडउ माय । ऊमाहउ करि आवीयउ रे, सेवक पाय लगाय रे ॥२९॥1० साद सुण्यउ मयणा सती रे, उलखीयउ भरतार । बाई तम्ह सुत आवीयउ रे, झटकि उघाडउ7 बार रे ॥३०॥रा. बार उघाड्या मायडी रे, पाए पड्यउ' नरिंद । नारी सासू पाय पडी रे, सहु नई थया आणंद रे ॥३१॥रा०) माय वहू लेई सहू रे, आव्यउ कटक मझार1० । दत भणी तेडी करी रे, कई श्रीपाल विचार रे ॥३२॥रा० प्रजापाल नृप नई कह अरे, कंघ कहाडउ लेय11 ।। आवी मिलि अम्ह पति भणी रे. जउ वांछइ निज श्रेय रे ॥३३॥रा. जह कह थउ नृप चाकरह रे, चित्त विचारइ राय । मेसु प्राण न पहुचीयइ रे, तेहनउ कह्यउ कराय रे ॥३४||रा. कंध कहाडउ लेई करी रे, मालव पति आवेह । चंपा नृप12 आवीउ रे, मिलीयउ घणई सनेह रे ||३५||रा. बाप सुणउ मयणा कहई रे, ऊबर वर मुझ एह । कंध कठार नखावीयउ रे, जिनहरख उलखिज्यो तेह ॥३६॥रा। 1 सरिखी B 2 निज B 3 थई B 4 पहु० B 5 धरि B 6 तुहम B 7 उघाडउ माय बार रे B 8 पाये B9 वडा B 10 ० झरि B 11 लेई B 12 नाथ B Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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