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________________ आ जिनहर्षसूरि-विरचित कुडल नयर ईहां थकी, सय1 जोयननउ परमाण ।स। मकरकेतु राजा तिहां, राणी कमलतिला गुण-खाणि ॥८७॥स०। तास सुता गुणसुदरी, पण कीधु छई तिणि एह । वीणा-नादइ रीझवई, जिनहरख कहूं वर तेह ॥८॥ दुहा राजकुमर तिहां बहु मिल्यां, सीखइ वीगाराग ।। सीपउ मनमा चीतवई, ए जोएवा भाग ॥८९॥ घरि आवी नवपद जपई, नवपद भगत प्रतक्ष । श्री विमलेसरसु थयउ, दीघउ हार अलक्ष ॥९ मोह लगावइ सहुभणी, मूकइ वंछित गाम । हार देई श्रीपाल नह, देव गयउ कहि आम ॥ ॥९॥ १६. ढाल : सुविचारी रे प्राणी, 'धरम करइ ते धन्य पहनी । कुंडलपुर गयउ पाधरउ जी, कंठई पहिरी हार । रूप कीयउ निज वामण जी, जिहां भणई राजकुमार ॥९२॥ सुविचारी रे साजन सुणिज्यो वचन रसाल । नवपद ना समरण थकी जी, सुख पाम्या श्रीपाल आं०। कुमरी पासई सहु गया जी, वामण पिणि गयउ साथ 18 नादकलायई रीझवा' जी, लेई वीणा10 हाथि ॥९३॥सु०.) लोक निहाल वामण जी, 11 राजकन्या श्रीपाल । मोही रूप देखी करी जी, कंठ12ठवी वरमाल ॥९४॥सु०।रूप प्रगट कुमर कीय उ जी, परणाव्यउ तिहां राय ।। सुख विलसइ संसारना जी, इक दिन रमित्रा जाय ।।९५||सु०॥ पंथी एक मिल्यउ तिहां जी, पूछघउ अचरिज कोई । कुंड गपुरथी आवीय जी, कणयापुरमा होई ॥९६।।सु०। विजयसेन राजा तिहां जी, कनकमाला तसु नारि । 13 श्रीलोक्यसुदरि कुअरी जी, रूप कला गुण धार ।।९७||सु०॥ 1 सउ B2 वरु B 3 लाग B4 लेस्वर B 5 देई B 6 प्रत B में देसी 'झांझरियां मुनिवर नी' एक और है 7 निज मन थिर करि जोइ एहनी B8 साथि B9 रोझवी B 10 वीणा निज B 11 राय B 12 कंठे B 13 औलो० B Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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