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आ. जिनहर्ष सूरि - विरचित
दूहा
बाबरपति कहई, कुमरनई, नगर पधारऊ राज ' । मुझन सेवक लेखनी, रात्र 2 वधारउ लाज ॥१९॥ कुमर सुभट परिवर्य 34, गयउ तास आवास । मयण सेना निज
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कन्यका, परणावी सुविलास ||२०|| १०. ' ढाल : जंबूदीप मझारि पहनी
परणी राजकुमारी रे, अपछर सारिखी 7, सुख विलसइ तिहां बहुपरइ ए । आप्या माल अपार रे, नाटक नव वृंद, भरीयानइ सहु को भरई ए ॥ २१ ॥ कुमरि चलावीराय रे, बइसी प्रवहणई, सेठ संघात संचस्था ए । वाहण जलधि मझारि, चलता निसी - दिनइ 10, रतनदीप जई 11 उतरथा ए ॥ २२ ॥ परदेसी 12 नर एक रे, आव्यउ कुमरनइ पासइ, ताम बोलावीयउ ए । विहांथी आयउ वीर रे, कोई अपूरव, नयणे अचरिज आवीयउ ए ॥ २३ ॥ रतनसंचया नाम रे, नगरी ते कहइ, विद्याधर जीता अरी ए । कनककेतु राजा रे, कनकमाला राणी, मयणमंजुषा दीकरी ए ॥ २४ ॥ देवलि 13 रिषभ जिनंद, पूज्या 14 नृप कन्या, एक दिवस कीधी बहु ए 15 | राजादिक सहुलोक 16 रे, निरखी17 गंभाराथी, बाहिरि नीसरीया सहु18 ए ॥ २५ ॥ झटक जडाना बार 19 रे, कुमरी मन चितर, कोइक दूषण मुझ सही ए । पुत्री सुणि कहइ राव रे, इहां मुझ दूषण, ताहरउ दूषण को नहीं ए ॥ २६ ॥ तुझ वर चिंता कीध रे, जिन आगलि रही, 20 बार भीडाणा तेत्र तीए । सावद्य निता एह रे, थई आशातना, सुवाणी थई दीपती ए ॥ २७॥
दूहा
दोस न कोइ कुमारियह, नेरवर दोस न कोइ । जिनि21 कारण जिणहर जडघउ, तं निसुणऊ सहु कोइ ॥ १ ॥ जसु नर दिठहि होइस, जिणहर मुक्त दुवार । सोइ ज मयणमंजू सयह 22, होइसइ भरतार ||२|| सिरिरिसहेसर-उलगणि, हुं चक्केसरि देवि । मासभिंतर तसु नरह, आणिसु णिश्वई भेवि ॥३॥ ११. ढाल पाछलीनी 23
24 हरिख्या सहु नर नारि, चिंता सहु गइ आज, दिवस छई छेहलउ ए । लेई निज परिवार रे कुमर गयउ तिहां, रूप- गुणइ सोभइ भलउ ए ||२८|| देवल सनमुख दीठ रे जिनगृह वारणा, वार न लागी उघड्या ए ।
साची थई सुरवाणि रे, लोक कहई 25 सहू, बे सरिखा ए विहि23 घडया ए ॥ २९ ॥
1- 2 राजि B 3 सुभट घटे B 4 • वड्यउ B 5 ढाल - बालुड़ानी B 6 • मारि रे B 7 सारीखि B 8 बहूई B 9 वाहणे B 10 ० दिसी B 11 ऊत• B 12 परदेशी B 16 सहू B 17 निरखि B 18 सहू B जिण B 22 मंजूसियह B 23 मात्र B में 24 इरख्या
13 देवळ B 14 पूजन B 15 बहू B 19 वीर A 20 वार A 21 सहू B 25 इस B 26 बहिB
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