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________________ लघु श्रीपालरास जई परदेस रिद्धि ले कभी रे, लेमु हुं बापीठ राज रे । वाट विषम छई सुत परदेसनी रे, तु बालक क्रिम सरिस्यई। काज रे || ८५ || ए | Jain Education International राणीजाया मा नान्हा नहीं रे, गयघट भाजइ नान्हर सीह रे । + एकलडउ पणि 5 सीहसु भिडइ रे, नाणर मनमा केहनउ बीह रे || ८६ ॥ | ए | चास्यउ घरि धौर रे । मन दिलगीर रे ||८७||| जणणी जी मायानइ आगलि जाता एक मूंकी करी रे, खडग लेई नर निरखीउ रे, वनमा बहठ कुमर कहई बइठ साधक विगि विद्या स्पह कारण रे, विद्याधर धुं सुणि गुणवंत रे । साझा नहीं रे, साधक जोऊ छु सतवंत रे ||८८|ए साधि विद्या हु साधक ताहरउ रे, जलतरण एक सस्त्र निवारिणी रे, 9 विद्या विद्याधरनी सीध रे । दोइ चाल्पक तिहांथी कुमर 10 उतामलऊ रे, कहई चिनहरखसु 12 तिहां रहइ रे, धवल बडी विद्याधर दीघ रे || ८९ ॥ ए| आग्यउ 11 भरुअछ मझारि रे । अधिकार रे ||१०|| दृहा 15 प्रवहण पूरक्षा पचिस, धवल सेठ सिरदार | सुभर सहस दस राखीया, चाकर चउकीदार ||११|| 1 बल बाकुल देई करी, पोत हंकार्या" जाम | चल नही ते ठामथी, चिंतातुर थयउ ताम ।।९२।। ८. ढाल यतिनी, सोरठ राग 18 वि धवल सेठ जई धाम, पूछी सीकोतरी ताम । मंत्री लक्षण नर आलइ, बल तउ तुझ वाहण चालई ॥९३॥ राय पास' जई सिर नामी, एक नर दीझइ 20 मुझ स्वामी । बल देइ पोत चलाउ, तुम्ह सुरसायइ सुख पाउं ॥ ९४ ॥ नृप कह परदेसी कोई, एकलडउ जे नर होई । 2 मुझ हुक्मइ ते तु लेजे, सीकोतरि नइ 22 बलि देजे ||१५|| 1 सरिस B 2 जावामां नन्हा नहीं रे A 3 मुभिss रे B 6 मानइ' B 7 एके नरे B डरे B 11 गयछ B 12 हरष हरष B B 16 बाल A 17 ० कीरया B 18 हवै B परदेशी B 22 बल B. ४९ B4 एफडउ A 5 पिणि सहसा 8 सर्व B 9 शस्त्रनिवारिणी B 10 उता13 सुनियो B 14 पांच से B 15 तिथिवार 19 लक्षन A 20 मुझ दीजई B 21 कहूँ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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