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________________ आ. जिनहर्षसूरि-विरचित सिद्धचक्र आराधीयइ1, गुणीयई श्री नवकार । मोरी बहिनी । . आंबिल आसू चैत्रीयई, करीयइ नव नव सार ।६१।मो. नव तउ उली इम कीजीयई, ऊजमणु तप-अंत मो. बहिनी तन-रोग सहु टलइ, लहीयइ भोग अनत ॥मो०।।६२॥ गुरू वयणे तप आदरयउ4, आराध्यु सिद्धचक्र । मो० । न्हवण-जलई सह छांटीया, रोग गया टलि वक्र ॥मो॥६३॥ एक दिन नीसरया चैत्य थी, दीठी कुमरइ माय । मो० पाए लागउ प्रेमसु, हीयडई हरख न माय ॥मो॥६४॥ . . सासू ने पार पडी, मयणां7 धरीय अविचल जोडी थाइज्यो, दीधी एम जगोस । मो.।। आसीस ॥ मो. ॥६५॥ किहां थी तुम्हे रे ईहां आवीया, किम जाण्यउ ईहां मुझ । मो. कहई१ जिनहरख आवी10 इहां, ते कह सांभलि तुझ11 ॥६६॥मो.) दूहा तुझ तीरइ थी हुँ चली, कोस बीयइ पहुत्त । . पूछण रोग पडी गणउ, दीठउ साधु विरत्त ॥६७ . कहीयह नीरोगी हस्यई11, मुझ सुत भगवन् भाखि । तुझ सुत नीरोगी थयउ, नवपद केरी साखि ॥६८॥ मालवपति-कन्या वरी, मयणसुदरी नाम । सुधि पामी मिलवा भणो, हुं आवी इणि ठाम ॥६९॥ ६. ढाल : नदी जमुना12केइ तीर उडइ13 दो पंखीया पहनी 1 सभी कड़ियों में 'ई' पर अनुस्वार B 2 ओली B3 तनु रोग सह रले B4 आदर B5 चैत्य थी नीसरथा B 6 हीय, B 7 मयणा B 8 मुज्झ B 9 कहैं जिनहरख हां आवी B 10 तुज्झ B 11 हुस्यै B 12 यमुना के B 13 उहै दो B Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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