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________________ लधु श्रीपालरास एक समय राजा प्रजापाल ने दोनों पुत्रियों को बुलाकर बाद्ध परीक्षा हेतु श्लोक का एक चरण दिया । उस चरण के साथ तीन चरण और मिलाकर समस्यापूर्ति करनी थी। दोनों ने अपनी अपनी मान्यता व स्वभावानुसार पादपूर्ति की । सुरसुंदरी ने अपने सुखों का श्रेय राजा को देकर खुशामत को, तो मदनसुंदरी ने तो स्वकृत कर्मो को ही उन्नति व पतन, दुःख और सुख के लिये मान्य किया । इससे राजा प्रजापाल मदनसुदरी पर कुपित हुभा । राजाने उसे समझाने के लिये अनेकानेक प्रयत्न भी किये । पर मदनसुदरी अपने सिद्धान्त पर दृढ़ रही । राजा ने अपनी कृपा को सर्वोपरि माननेवाली सुरसुंदरी का विवाह मनपसंद राजकुमार अरिदमन के साथ कर दिया और मदनसुदरी को धमकी दी कि यदि वह पिता राजा की शक्ति को स्वीकार नहीं करेगी तो उसका फल उसे अच्छा नहीं मिलेगा । पर मदनसुन्दरी को तो अपने कर्मो पर पूर्ण विश्वास था । उसी समय सात सौ कोड़ियों के समहने अपने नायक-जिसका नाम उबर थाके साथ उज्जैनी नगरी में प्रवेश किया और अपने नायक के लिए एक काया की मांग की। मैना पर ट्रेषित राजा ने उबर को ही मैनासुदरी को देने का विचार किया । तब उबर ने कहा कि 'राजन् ! आप इस सुंदर राजकुमारी की जिंदगी के साथ खिलवाड़ न करें। वह मदनसुदरी को स्वीकारने में आनाकानी कर रहा था कि इसी समय एक आज्ञांकित पुत्री के समान मयणा ने उसे पति रूप में अंगीकार किया । मयणा और उबर नाम से विख्यात श्रीपाल भक्तिपूर्वक जिनेन्द्र देव ऋषभ देव के मंदिर में गये। जहाँ स्तुति करते समय दैवी प्रभाव से श्रीफल व माला भगवान् की प्रतिमा से अपने सम्मुख आते दृष्टिगत हुए । श्रीपाल ने श्रीफल और मयणा ने माला ग्रहण की । पश्चातू दोनों गुरुवंदन करने गये । मुनिराज ने नव आंबिल सह नवपदाराधना करने का उपदेश दिया । तथाप्रकार की आराधना से उबर व्याधिमुक्त हुआ और स्वर्ण की कांतिमय उसकी देह हो गई। मयणा व श्रीपाल सुखपूर्वक धर्माराधना में तत्पर हए । एक समय जिनमंदिर से बाहर निकलते समय श्रीपाल ने एक महिला को आते देखा। समीप आने पर अपनी माता को पहचान कर चरण-स्पर्श किया । मयणा ने भी उसे सम्बन्धी समझ पति के अनुगमन रूप चरणवन्दन किया । श्रीपाल के पूछने पर कमलप्रभा ने कहा-'बेटा ! तेरे लिये औषधोपचार के लिये वैद्य की खोज करती हुई कौशाम्बी नगरी में गई । वहाँ गुरुमुख से तेरी रोगमुक्ति एवं मयणा के साथ परिग्रहण का वृतांत जान सीधी यहाँ आई ।' माँ के साथ दोनों सुख से समय व्यतीत करने लगे। इसी बीच मयणासुदरी की माँ रूपसुदरी जो राजा से कुपित होकर भ्रातृगृह चली गई थी एक बार जिनमंदिर आई । वह मयणा को अन्य पुरुष के साथ समझ कर विलाप करने लगी । मयणा ने कुष्टरोगमुक्ति की सर्व हकीकत का संतोषपूर्वक निवेदन किया । रूपसुदरी ने कमलप्रभा से जब परिचय पूछा तो सुदर और शूरवीर राजपुत्र जामाता मिलने की अतीव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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