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लघु श्रीपालरास
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उनकी रचनाओं में तालबद लय एवं दालों का वैविध्य उनकी संगीत प्रियता की ओर ध्यान आकर्षित करता हैं । भक्तिभाव, गुणोत्कीर्तन तथा साहित्य सर्जन में उनका कर्तव बेजोड है । जिनशासन में एवं भारतीय संस्कृति के इतिहास में उनका साहित्य अनूठा स्थान रखता है।
पूर्वपरम्परा एवं प्रस्तुत कृति
श्रीपाल एवं मदनसुंदरी (मैनासुंदरी) की कथा नवपदाराधना (सिद्धचक्र) में विशेष महत्त्व रखती हैं । इसका माहात्म्य इसी बात को सूचित करता हैं कि इस विषय से सम्बन्धित अद्यावधि अनेकानेक रचनाएँ हुई है । उनमें प्राकृत संस्कृत में पद्य एवं गद्य दोनों में तो निर्माण हुआ ही है इसके अतिरिक्त गुजराती, राजस्थानी भाषा में रास चौपाई भी रचे गये । इनमें से सर्व प्राचीन प्राकृत भाषा में प्राप्य हैं । संभव हैं उससे पूर्व भी इसकी रचना हुई हो और काल के दुष्प्रभाव से वह विच्छिन्न हो गई हो । कालक्रमानुसार कुछ रचनाओं का यहाँ उल्लेख किया जा रहा है
१. वि. सं. १४२८ में पू आ.श्रीरत्नशेखरसूरीश्वरजी म. रचित 'सिरिसिरिवाल __ कहा २ वि. सं. १४२८ के पश्चात् रत्नशेखरीय कृति पर हेमचन्द्र मुनि की प्राकृत से
संस्कृत में टीका ३ वि. सं. १५१४ में ५ श्री सत्यराज गणिवर रचित पद्यमय श्रीपालचरित्र १ वि. सं. १५५७ में आ. श्रीलब्धिसागरसूरी कृत श्रीपालचरित्र श्लोकबद्ध ५ वि. सं. १६६२ में रत्नलाभ-शिष्य क्षमारंग कृत श्रीपालरासरे ६ वि. सं. १७२२ में महिमोदय-शिष्य मतिहस कृत श्रीपालरास ७ वि. सं. १७२५ में मनसोम कृत श्रीपालचरित्र बालावबोध ८ वि. सं. १७२६ में न्यायसागर कृत श्रीपालरास ९ वि. सं. १७३५ में रामचन्द्र शिष्य पद्मरंग कृत श्रीपाल चौपाई १. वि. सं. १७३८ में महोपाध्याय विनयविजय गणिवर एवं महोपाध्याय यशोविजयजी
गणिवर रचित श्रीपालरास ११ वि. सं. १७४० में जिनहर्षसूरि कृत श्रीपाल रास (पृहद्) १२ वि. सं १७४२ में जिनहसूरि कृत श्रीपाल रास (लघु) प्रस्तुत कृति १ सिरि सिरिवाल कहा-सार, प्राक्कथन-पृ. १५
अहमदाबाद : रसिकलाल रामचंद शाह, रामपुरवाला, २. मणिधारी जिनचन्द्रसूरि सप्तम शताब्दी स्मारिका अन्तर्गत खरतरगच्छ साहित्य सूची.
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