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________________ साध्वी श्री सुरेखाभी इन तीनों ही प्रतों के अंत में नवपद अथया सिद्धचक्र का माहात्म्य व विषय निर्देश दिया गया है। २४ संपादन पद्धति- १. 'ब' का 'ख' किया गया है किन्तु जहाँ कसम प्रयोग है वहां 'ब' ही रखा है। व तत्सम तथा व का, व तथा च का प्रयोग यथास्थान अभिप्रेतानुसार सुधार दिया गया है। २. एक दंड को अल्पविराम तथा दो दंड को श्लोकानुसार अर्वाचीन पद्धति के समान किया हैं । ३. ढाल की संख्या कहीं कहीं रह गई है वह पूर्ण कर दी गई है । प्रत A में दालों की संख्या २० है । जबकि १७ वी संख्या का प्रयोग दो बार कर दिया गया है । कुल ढाल संख्या २१ है । ४. ५. श्लोक संख्या १७७ से १८९ के स्थान पर १-२ संख्या दी गई थी । वहाँ क्रमानुसार सुधार किया गया है। कवि जिनह प्रस्तुत कृति श्रीपालरास के कर्ता 'जिनहर्ष' खरतरगच्छ के विद्वान ज्योतिपुंज जैन श्रमण थे । दादा गुरुदेव श्री जिनकुशल सूरि के वे शिष्य थे । उनकी कई एक कृतियाँ 'जसराज ' अथवा जसा नाम से भी प्राप्त होती है । हो सकता है यह उनकी पूर्वावस्था का नाम हो । इनका जन्म समय व मृत्यु समय निश्चित रूप से प्राप्त नहीं होता, किन्तु ई. स. १६४८ से ई० स० १७०७ तक इनकी रचनायें प्राप्त होती है । अत: उनका जीवन १७ वीं शती का उतराई तथा १८ वीं शती का पूर्वार्ध तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है। उनकी दीक्षा समय भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता । पर ंतु ई. स. १६३९-१६४२ के समय काल में इन्होंने 'जिनराजसूरि' के पास में संयम अंगीकार किया ऐसा ज्ञात होता है । इन्होंने किस भूमि को जन्म लेकर अलंकृत किया, यह भी अज्ञात है। ई. स. १६७९ तक उन्होंने राजस्थान में ही विचरण किया है अतः अनुमान से कहा जा सकता है कि वे राजस्थान के हो। उसके पश्चात् वे अंतिम समय में पाटण मे रहे थे ऐसा मालुम होता है। 'जिनहर्ष' जैन संप्रदाय के प्रतिभाशाली, उदारमना विद्वान साधु थे । शताधिक कृतियों के विस्तार के विपुल सर्जन में उन्होंने गुजराती ही नहीं अपितु रजस्थानी हिंदी कृतियाँ लिखी जिनमें अनेकानेक रास बीसी, छत्तीसी, सज्झाय, स्तवन आदि रचनाएँ समाहित होती हैं । कथासाहित्य में उनकी रचनाएँ जैनेतर साहित्य में शामल का स्मरण करा देती हैं। उनकी रचनाओं में कथाकथन, वर्णन, संवाद, शैली, छंद - अलंकारादि विशेष रूप से प्राप्त होते है । " Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.520761
Book TitleSambodhi 1982 Vol 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages502
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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