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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
राजारानी, ब्रह्मेश्वर एव लिंगराज मन्दिर-११ वी शती ई० । सूर्य मन्दिर - १३ वी शती ई० । शर्मा, ब्रजनारायण, सोशल लाईफ इन नार्दन इण्डिया, दिल्ली, १९६६, पृ० २१२-१३ ।
शाह, यू०पी०, 'यक्ष वरशिप इन अलि जैन लिट्रेचर', जर्नल ओरियण्टल इन्स्टिट्युट (बड़ौदा), खं० ३, अं० १, सित्म्बर १९५३, पृ. ५४-७१ । मिश्र, रमानाथ, यक्ष कल्ट ऐण्ड आइकानोग्राफी, दिल्ली, पृ० ५२-५३ । कामदत्तो जिनागारपुरो लोकप्रवेशने । मृगध्वजस्य प्रतिमा स न्यधान्महिषस्य च ।। अत्रैव कामदेवस्य रतेश्च प्रतिमां व्यधात् । जिनागारे समस्तायाः प्रजायाः कौतुकाय सः ।। कामदेवरतिप्रेक्षा कौतुकेन जगज्जनाः । जिनायतनमागत्य प्रेक्ष्य तत्प्रतिमाद्वयम् ॥ सविधानकर्माकर्ण्य तद् भाद्रकमृगध्वजम् । बहवः प्रतिपद्यन्ते जिनधर्म महर्दिवम् ।। प्रसिद्धं च गृह जैन कामदेवगृहाख्यया । कौतुकागतलोकस्य जातं जिनमताप्तये ।।
हरिवंशपुराण २९. १-५ (स. पन्नालाल जैन, ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन ग्रंथमाला, संस्कृत ग्रंथांक २७, वाराणसी, १९६२, पृ० ३७८) दृष्टव्य, त्रिपाठी, एल० के०, 'दि एराटिक स्कल्पचर्स ऑव खजुराहो, ऐण्ड देयर प्राबेबिल एक्सप्लानेशन', भारती, अं० ३, पृ० ८२-१०४ । मोढेरा के सूर्य मन्दिर की काम मूर्तियों में भी कुछ उदाहरणों में मुद्दे हुए सिर वाले निर्वस्त्र और मयूरपीच्छिका से युक्त जैन साधुओं को काम. क्रिया में संलग्न दिखाया गया है।
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