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जैन मन्दिरों में काम - शिल्प
मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
काम - कला सम्बन्धी मूर्तियां मध्ययुगीन मन्दिरों पर प्रमुखता के साथ अंकित हैं । ये मूर्तियां ९ वीं से १४ वीं शती ई. के मध्य की हैं । मध्ययुग में मंदिर केवल देवमूर्तियों या धर्म के अन्य पक्षों से ही सम्बन्धित नहीं रहे, वरन् उनमें समकालीन संस्कृति के विविध पक्ष भी मूर्त रूप में अभिव्यक्त हुए हैं । इन पर धार्मिक मूर्तियों के अतिरिक्त नृत्य, संगीत, आखेट युद्ध, शिक्षा, काम-कला, व्यापार तथा दैनिक क्रिया कलापों के विविध अंकन हैं । मन्दिरों पर काम - कला सम्वन्धी मूर्तियों के अंकन की कई व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई। हैं । २ पर इस प्रकार के शिल्पांकन को मानव की सहज प्रवृत्ति और आवश्यकता की मूर्त अभिव्यक्ति मानना ही उपयुक्त होगा । जीवन में काम की लौकिक और धार्मिक भनिवार्यता स्वीकार करने के पश्चात् मन्दिरों पर उनके लेखन में लोगों को झिझक नहीं महसूस हुई होगी । ४
शालभंजिका, मिथुन तथा अप्सरा - मूर्तियों का अंकन काफी पहले से कला में प्रचलित था, जिसके माध्यम से नारी सौन्दर्य तथा उसके आकर्षण को शिल्प में अभिव्यक्त किया गया । तांत्रिक प्रभाव के कारण मध्ययुग में मन्दिरों पर कामक्रिया की प्रचुर मूर्तियां बनीं। खजुराहो ( छतरपुर मध्यप्रदेश ), ५ भुवनेश्वर ( पुरी, उड़ीसा ) एवं कोणार्क ( पुरी, उड़ीसा )७ जैसे विश्वप्रसिद्ध स्थलों के साथ ही मोढेरा ( महेसाणा, गुजरात ) के सूर्य मन्दिर (१०२६-२७ ई.), कु भारिया ( बनासकांठा, गुजरात ) के कुभेश्वर मन्दिर ( ११ वीं शती ई.), एलोरा ( औरंगाबाद, महाराष्ट्र ) के कैलाश मन्दिर ( ल. ८ वीं - ९ वीं शती ई.) तथा अन्य अनेक स्थलों पर इस प्रकार के प्रभूत अंकन हैं ।
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ब्राह्मण मन्दिरों पर इस प्रकार के शिल्पांकन की प्रमुखता सर्वथा ज्ञात है । पर जैन मन्दिरों पर इस प्रकार की मूर्तियों की चर्चा अभी तक नहीं हुई है । १० वीं से १२ वीं शती ई. के मध्य के कुछ जैन मन्दिरों पर भी काम कला सम्बन्धी मूर्तियां हैं, जो अभी तक अप्रकाशित हैं । जैन धर्म में श्रमण - श्रमणियों के साथ ही गृहस्थों का भी महत्त्व रहा है । जैन यद्यपि व्यापार, व्यवसाय, युद्ध एवं अन्य क्रिया-कलापों में समाज के अन्य वर्गों के सहभागी थे, किन्तु कामाचार के प्रति उनका भाव ब्राह्मण एवं बौद्धों की अपेक्षा संयत रहा है।
ब्राह्मण, बौद्ध और जैन धर्मों में सातवीं शती ई. के बाद तांत्रिक प्रभाव पड़ा । ब्राह्मण और बौद्ध धर्मो की तुलना में जैन धर्म पर तांत्रिक प्रभाव कम और मुख्यतः मंत्रवाद के रूप में पड़ा । जैन धर्म तांत्रिक पूजाविधि, मांस, मदिरा और स्त्रियों से सर्वथा
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