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खलखलति णं मंगल घोसइ उ कासु वि सामण्णहु अण्णहु विहिं भाइहिं थक्कड़ तीरिणिजलु
दरिसिउँ ताइ तलु पेक्खिवि महुमहणु
अपभ्रंश साहित्य में कृष्णकाव्य
घन्ता
किं बाजहुँ गाहहु रत्ती मयणं सरि वि विगुती
मानों कृष्ण की देहप्रभा की धारा ।
मामों अंजनगिरि की आभा ।
'तब मंथर गति से बहती हुइ कालिन्दी उनको दृग्गोचर हुई । मानों धरातल पर अवतीर्ण खरितारूपधारिणी तिमिरघन यामिनी ।
णं माहवहु पक्खु सा पोस अवसें तूसइ जउण सवण्णहु णं धरणारिविहत्तडं कज्जल्ल
मानों धरातल पर खींची हुई कस्तूरीरेखा ।
मानों गिरिरूपी गजेन्द्र की मदरेखा ।
मानों कंसराज की आयुः समाप्ति-रेखा ।
- मानों घरातल पर अवस्थित मेघमाला ।
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वृद्धा सी 'तरंग बहुल' ।
श्यामा सी मुक्ताफलवती ।
वह शैवालबाल प्रदर्शित कर रही है।
फेनका उत्तरीय फहरा रही है ।
गेरुआ जलका, ब्युत कुसुमों से कर्बुरित रक्तांबर पहने हुई है । किन्नरीरूपी स्तनाग्र दिखला रही है ।
विभ्रमों से संशयित कर रही है ।
सर्पमणि की किरणों से उद्योत कर रही है ।
कमलनयन से कृष्ण को मानों निहार रही है ।
('महापुराण', ८५-२)
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कमलपत्र के थाल में (स्वच्छ जलकण के भक्षत उछाल रही है ।
कलकल शब्द करती मंगल गा रही है ।
मानों कृष्ण के पक्ष की पुष्टि कर रही है ।
यमुना सचमुच 'सवर्ण' पर प्रसन्न होती है, जैसों तैसों पर नहीं ।
फलरूप उसका जल दो विभागों में बँट गया,
मानों धरारूपी नारी ने काजर लगाया ।
• क्या हम समझें कि अपने प्रियतम पर अनुरक्त होकर उसने अपना निम्नप्रदेश प्रकट
किया १
मधुमथन को देखकर नदी यमुना भी मदनव्याकुल हो उठी ।
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