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________________ 40 अपभ्रंश साहित्य में कृष्णकाव्य - 'हरि' को अपने घर के प्रांगण में मचाकर राधा ने लोंगो को विस्मय में गल दिया । भब तो गधा के पयोधरों का जो होना हो सो हो ।' हेमचन्द्र के 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' (८,५) में किया गया वर्णन इससे तुलनीय हैगोपियों के गीत के साथ बालकृष्ण नृत्य करते थे और बलराम ताल बजाते थे । 'स्वयम्भूच्छन्द' में उद्धृत बहुरूपा मात्रा के उदाहरण में कृष्णविरह में तड़पती हुई गोपी का वर्णन है । पद इस प्रकार है र पाली थमहं, पम्भारें तोप्पिणु णलिणिदलु, हरिविओअ-सतावे तत्ती । - फल भण्णुहि पावियउ, करउ दइउ जं किंपि रुचई ॥ (४.१.१.१) : कृष्णवियोग के संताप से तप्त गोपी उन्नत स्तनप्रदेश पर नलिनीदल तोड़ कर रखती F। उस मुग्धाने अपनी करनी का फल पाया । अब दैव चाहे सो करें ।' मानों इस से ही संलग्न हो ऐसा मत्तबालिका मात्रा का उदाहरण है कमलकुमुआण एक्क उप्पत्ति - ससि तोवि कुमुआअरहं, देइ सोक्खु कमलहं दिवाअरु । पाविज्जइ अवस फलु, जेण जस्स पासे ठवेइउ ॥ (स्व० च्छ० ४-९-१) 'कमल और कुमुद दोनों का प्रभवस्थान एक ही होते हुए भी कुमुदों के लिए. चन्द्र एवं कमलो के लिए सूर्य सुखदाता है । जिसने जिसके पास धरोहर रखी हो उसको उसी से अपने कर्मफल प्राप्त होते हैं।" - मत्तमधुकरी प्रकार की मात्रा का उदाहरण सम्भवतः देवकी कृष्ण को देखने को आई उसी समय के गोकुलवर्णन से सम्बन्धित है । मूल और अनुवाद इस प्रकार है-, . ... ठामठामहि घाससंतुट्ठ - रत्तिहिं परिसंठिआ, रोमंथणवसचलिअगडआ । दीसहिं धवलुज्जला, जोण्डाणिहाणाइ व गोहणा ॥ (स्वच्छं० ८-९-५). 'स्थान-स्थान पर रात्रि में विश्रान्ति के लिए ठहरे हुए और जुगाली में जबड़े हिलाते हुए गौधन दिखाई देते है - मानों ज्योत्स्ना के घवलोज्जवल पुन ।' .. इन पद्यों से गोविन्द कवि की अभिव्यक्ति की सहजता का तथा प्रकृतिचित्रण और भवचित्रण की अच्छी शक्ति का हमें थोड़ा सा परिचय मिल जाता है । यह उल्लेखनीय है कि बाई.के.बालकृष्ण की क्रोडाओं के जन कवियों के वर्णन में कहीं गोपियों के विरह की तथा राधासम्बन्धित प्रणयचेष्टा की बात नहीं है। दूसरी बात यह है कि मात्रा या रहा जैसा मकुल छन्द भी दीर्घ, कथात्मक वस्तु के निरूपण के लिए कितना सुगेय एवं लयबद्ध हो + १, रहोस के प्रसिद्ध दोहे का भाव यहां पर तुलनीय है-- 'जल में बसे कमोदनी, चंदा वसे अकास । बो आहिं को भावता, सो ताहिं के पास ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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