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हरिवल्लभ भायाणी
बामदेव तीन खंडों पर शासन चलाता था । वह अपने प्रतिवासुदेव का युद्ध में संहार करके वासुदेवत्व प्राप्त करता था और इस कार्य में प्रत्येक बळदेव उसका साहाय्य करता था। राम, लक्ष्मण और रावण क्रमशः आठवे बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव थे । नवी त्रिपुटी थी कृष्ण, बलराम और जरासन्ध की।
- लिरसठ महापुरुषों के चरित्रों को प्रथित करने वाली रचनाओं को 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' या पत्रिषष्टिमहाकुरुषचरित' एमा नाम दिया जाता था। जब नव प्रतिवासुदेवों की गिनती नहीं की जाती थी तब ऐसी रचना 'चतुष्पंञ्चाशत्महापुरुषचरित्र' कहलाती थी। दिगम्बर परम्परा में इसको 'महापुराण' भी कहा जाता था। महापुराण में दो माग होते थे-आदिपुरोण और उत्तरपुराण।। आदिक्षराण में प्रथम तीर्थकर और प्रथम चक्रवर्ती के चरित्र दिए जाते थे। उत्तरपुराण में शेष महापुरुषों के चरित्र।
सभी महापुरुषों के चरित्रों का निरूपण करनेवाली ऐसी रचनाओं के अलावा कोई एक तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव आदि के चरित्र को लेकर भी कृतियां रची जाती थी। ऐसी रचनाएं 'पुराण' नाम से ख्यात थीं। कृष्ण वासुदेव का चरित्र तीर्थंकर अरिष्टनेमि के चरित्र के साथ .. संलान था। उनके चरित्रों को लेकर को गई रचनाए' 'हरिवंश' या 'अरिष्टनेमिपुराण' के नाम से ज्ञात है।
जहां कृष्ण वासुदेव और बलराम को कथा स्वतंत्र रूप से प्राप्त है वहां भी वह अन्य एकाधिक कथाओं के साथ संलग्न तो रहतो थी ही । जैन कृष्णकथा नियम पे ही अल्पाधिक मात्रा में अन्य तीनचार विभिन्न कथासूत्रों के साथ गुम्फित रहती थी। एक कथासूत्र होता था कृष्णपिता वसुदेव के भ्रमणों की कथा । दूसरा बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का चरित्र । तीसरा कथासूत्र होता था पांडवों का चरित्र । इनके अतिरिक्त मुख्य मुख्य पात्रों के भवान्तरों की कथाएं भी दी जाती थी। बसुदेवने एक सौ बरस तक विविध देशों में भ्रमण करके अनेकानेक मानवकन्याएं और विद्याघरम्याए प्राप्त की थीं। उसकी रसिक कथा 'वसुदेवहिण्डि' के नाम से जैन परम्परा में प्रचलित थी । वास्तव में यह गुणाढ्य की लुप्त 'बृहत्कथा' का ही जैन-रूपान्तर था। कृष्णकथा के प्रारम्भ में बसुदेव का वंशवर्णन और चरित्र आता है। वहां पर वसुदेव को भ्रक्षणकथा भी छोटे मोटे रूप में दी जाती थी।
अरिष्टनेमि कृष्ण वासुदेव के चचेरे भाई थे । बाईसवें तीर्थकर होने से उनका चरित्र जैनधर्मियों के लिए सर्वाधिक महत्त्व रखता है। अत: अनेक बार कृष्णचरित्र नेमिचरित्र के एकदेश के रूप में मिलता है। इसके अलावा पाण्डवों के साथ एवं पाण्डव-कौरव-युद्ध के साथ कृष्ण का घनिष्ठ सम्बन्ध होने से कृष्ण के उत्तरचरित्र के साथ महाभारत की कथा भी प्रथित होती भी। फलस्वरूप ऐसी रचनाओं का 'जैन महाभारत' ऐसा भी एक नाम प्रचलित था। उस प्रकार सामान्यतः जिस अंश को प्राधान्य दिया गया हो उसके अनुसार कृष्णचरित्रविषयक रचनामों का अरिष्टनेभिचरित्र' (या 'नेमिपुराण'), 'हरिवंश', 'पाण्डवपुराण','जैन महाभारत' मादि नाम दिए जाते थे। किन्तु इस विषय में सर्वत्र एकवाक्यता नहीं है। अमुक विशिष्ट अश, को समान प्राधान्य देने वाली कृतियों के भिन्न भिन्न नाम भी मिलते है। जैसे कि आरम्भ में
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