SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९६ Jain Education International संपा. र. म. शाह ता तम्हि निवसंता, समासे लहउ पासु । जिव गिहिं दरिसावं, सिद्धहं आवासू ॥ उवरिम उपस्मि खणि संठाविउ जुद्धिहिं मोहराउ पाडाविउ । जत्थ न रोग-सोग-संतावा जम्म-जरा-मरणा हम-भावा । मह नो-तण्हा हससि अंगा पुणे पुण होइसह मोहह जोगा । डझेस एयम्मि पल वणि बहु भमडेसउ चउगड़-भव-वणि ॥ ९ ॥ तिक्ख- दुक्ख लक्खाई, बहुविह पावेसउ । सोक्ख खण लवु एकू, न हु पुण पेक्खेसउ || अह अहो मा कुणउ पमाऊ अनु सुह- दुक्खहं हरिस - विसाऊ । मुणिय सिक्तं केवि हु लिंतो नाह अणगल सुमइ फुरंती । जे पुण तं गुरु-वयणु उवेक्खई चुलसी- जोणि-लक्ख पेक्खई । इग-बि-ति-चउ-पंचिदिय-रूविहिं भमइ जोव जिण वगण अभाविहिं ॥ १० ॥ माय पिया भागाई, गुतिहिं संरुद्धा । भावच्च-सिणेह, बहु-बंघणि बद्धा ॥ बहुभव -पर- घर - पं. हिंडइ अप्पर मण-वय- कायहिं दंडइ । नर- तिरिय-गुरु- दुक्खर्हि खंडिय कालु अणंतर पुणरवि हिंडिय । चुल्ल गाई दितिर्हि पाविय बारसंग मणुबाई सहाइय । तारेजिय जिणसूरिहिं भासिउ करि जिणधम्मु पमाउ विणासि ॥ ११॥ ॥ अंतरंगरासः समाप्तः ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520759
Book TitleSambodhi 1980 Vol 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages304
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy