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संपा. र. म. शाह
ता तम्हि निवसंता, समासे लहउ पासु । जिव गिहिं दरिसावं, सिद्धहं आवासू ॥
उवरिम उपस्मि खणि संठाविउ जुद्धिहिं मोहराउ पाडाविउ । जत्थ न रोग-सोग-संतावा जम्म-जरा-मरणा हम-भावा । मह नो-तण्हा हससि अंगा पुणे पुण होइसह मोहह जोगा । डझेस एयम्मि पल वणि बहु भमडेसउ चउगड़-भव-वणि ॥ ९ ॥ तिक्ख- दुक्ख लक्खाई, बहुविह पावेसउ ।
सोक्ख खण लवु एकू, न हु पुण पेक्खेसउ || अह अहो मा कुणउ पमाऊ अनु सुह- दुक्खहं हरिस - विसाऊ । मुणिय सिक्तं केवि हु लिंतो नाह अणगल सुमइ फुरंती । जे पुण तं गुरु-वयणु उवेक्खई चुलसी- जोणि-लक्ख पेक्खई । इग-बि-ति-चउ-पंचिदिय-रूविहिं भमइ जोव जिण वगण अभाविहिं ॥ १० ॥ माय पिया भागाई, गुतिहिं संरुद्धा । भावच्च-सिणेह, बहु-बंघणि बद्धा ॥ बहुभव -पर- घर - पं. हिंडइ अप्पर मण-वय- कायहिं दंडइ । नर- तिरिय-गुरु- दुक्खर्हि खंडिय कालु अणंतर पुणरवि हिंडिय । चुल्ल गाई दितिर्हि पाविय बारसंग मणुबाई सहाइय ।
तारेजिय जिणसूरिहिं भासिउ करि जिणधम्मु पमाउ विणासि ॥ ११॥ ॥ अंतरंगरासः समाप्तः ॥
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