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अंतरंगरास पिक्खिवि सिरि-जिणनाहो करुणा-रस-सायरु ।
सिवपुर-पह-सस्थाहो हय-मोह-निसायरुः ॥ अस्थि भवणु नामिण गुणठाणू चउदस-भूमि तसु परिमाण । मोहराय जं दुग्गमु वट्टइ जहिं उवसम-निव-सेणा लटुइ । वर-विवेय-पायारिहिं जुत्तउं संवर-छायणि बहु सच्छक्त । सहि तेरसमह खणि मुनि बिट्ठउ नाणाइय-परिवार-विसिष्ठ ॥४॥
पाव-ताव-संतत्ता सयलि विसहिं सत्ता ।
भव-दारिदक्कंता आकंदु करंता ॥ सच-सील-थंमेहिं पडतिहिं भज्जइ जीव अंगु सह चित्तहिं । दय-दम पट्ट-पडंतिहिं चूरिय गुत्तिनभित्ति निवडंनो परिय । चिंता-संतावेहिं अमुक्का काल-अजंत-भमंता थक्का । ..महापवित्तकरण-सहाइय तसु पासायह कहमवि धाइय ॥४॥
पाविउ करणु अप्पुव्वू, ताहह पुण कोई।।
राग-दोस-गुरु-गंठी, भिंदेविणु लेई ॥ . पहिलउ स्वणु मिच्छत्तऽभिहाणू फरसिउ सासायण-खण ठाणू । मह अनिवित्त-करणि संपाविउ सम्म-मिछ-खण तइड सहाइउ ।
तउ जिणराइहिं पहिउ तुरंतउ धम्म-बोहु चउरंग-बल-जुल । .. संबम-सुहडहं हउ आएसु मोह-दलह मा देउ पवेसू ॥६॥
धम्म-बोहि ते सत्ता, समअ-मयणि सित्ता ।
नाणंजणि तम-तिमिरू नयणहं घंसियत्ता ॥ अरि रि भविय आरुहउ तुरंता उवसम-खवग-निसेणि अभंता । एह पसायह उवरिम तृमिहिं मा मारेग्जउ वयरिय भूमिहिं । मा डजउ पलवणइं भयंकरि सयल-जीव-सत्वस्स खयंकरि । एए राग-दोस दो पावा लग्गा तुम्दहं पुण संतावा ॥७॥
मोहराउ पुण पुट्ठि, मावेइ तुरंत उ ।
विसय-कसायाइहि, नियय-बलु तउ । । अग्गि तिल्ल तहिं कुररा फुट्टा तहिं य मंद-भग्ग बहु खुट्टा । ' उवसम-मुहडिहि केवि उठाडिय विसय-चरड संजम-भडि पाडिय । चउथइ पंचमए वणि ठाविय जिणवर-धम्मह गुण-गण-भाविय । धम्म-बोहिं पुण भणिया भविया पेक्खह मोहिं जिय उवदविया ॥८॥
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