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के. आर. चन्द्र
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पुरिसाद (१९६.१२) पुरुषाद-पुरुषभक्षो •पुवक (१६९.१७) पूर्वक-पहले का, आद्य पोत्थाहग (१९१.२१) प्रोत्साहक पोरिसाय (१९५.२९) पुरुषाद-पुरुषभक्षी फरिसेऊण (१०७.११) परुषयित्वा-धमका कर फरुसिय (१०७.२२) परुषित-धमकाया हुआ
बाहिया (१२१ २१) बाहुका=बाहु बाहिरभाव (११५.६). बाह्यभाव-निराश बीयवाल (९४.१८) ब.जपाल-खेत का रक्षक भच्छअ (१४६.२२) भस्त्रिक-धमन, धौंकनी •बितिज्जिय (१२०.२५) द्विर्त य-दूसरा भायर (१९६.७) भअयर -भयकर भयदायी भुक्खंडिय (१५५.१९) भूखरा रंग (भू-खण्डिक) भोम (७७.९) भौम मंजिल मउडगंठि (१३७.५) मुकुटग्रंथि मुकुट-शेखर मंडुक्की (१३८.१९) थैली, पेटी मंदाय (१९५.२६) मंद होना मंसमुदय (१६८.१०) मांस-समुदय-मांस का पिण्ड, मांसखंड
मणस (१७८.१०) मनस-मन माउलाणी १४१.४) मातुलानी मामी माउलाणीया (१४१.९) " " मुण (९९.२३) मौन मेंढुल्लग (९४.२८) मेद्र=मेंढा, भेड़ • • मेरगा (१८४.१६) मर्यादका-मर्यादा रहजुग्ग (७७.२०) रथयुग=धुर, जुआ रंगयर (१६७.८) रङ्गचर-नट, पात्र
रायत्त (१२८.२६) राजत्वराजपद रुइय (१०६.७) रोपित स्थापित, मिश्रित लहुहत्थया (११९.६) लघुहस्तता-हस्तकौशल्य • लोभण (१९८.२०) लोभन लुभाने वाला वट्टमाणी (१०८.२०) वर्तमान परिस्थति, समाचार वत्ता (१०५.११) वक्ता वरिसया (७७.८) वर्षा, वा=बरसात ०वयणीय (८०.२४) वचनीय=निंदनीय, अनिष्ट वलंजेऊण (१४६.१०) वाणिज्यं कृत्वा व्यापार करके ०वहेयव्व (१२९.१६) वध्य वाइगी (१६६.२९) वाचिकी-वचन-सम्बन्धी
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