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________________ ३२ पाइय-सह-महण्णवो में अनुपलब्ध वसुदेवहिण्डी की शब्दा वाणिज्जेऊग (१४६.७) वाणिज्यं कृत्वा = व्यापार करके वायमिंग (१८९.२७) वातमृग = हवा में उड़ने वाला मृग ०विउरुग्व (११७.३) विकुर्व् = दिव्य शक्ति से बनावटी शरीर बनाना विक्कम (१२९.२४) विक्रम = चरण विखुज्जी कय ( ९५.२) विकुब्ज कृत = कूबड रहित किया हुआ विदिट्ठ (११२.३०) विद्विष्ट = धिक्कारप्राप्त • विवाड (१९०.१५, १२२.२८) विपादय् = मार डालना ० विहग ( १४५.१९) विभन्न = भागा हुआ वाहिणी ( १४१.७) वैवाहिनी = ब्याहिन, समधिनी (गुज. वेवाण ) ० वुच्छ (९२.२२; १४१.१२) वसित ( वस्त* ) = रहा या बसा हुआ ( पाली भाषा में वुत्थ; स्त=च्छं अथवा त्थ) वुढगा ( ९९.७) वृद्धिका वृद्धा, बुढ़िया ० वृग (१६८.९) वृक=बक, बगला वेकड (१०६.७) वैकृत = शराब (पासम. विअड = मद्य ) वेदिक (१८२.१६) वैदिक = वेद सम्बन्धी वेयाली (४९.६) (१)= समुद्रतट वैवाहिग (८२.५) वैवाहिक = समधी (गुज. वेवाई) वोज्झ (९४.२४) (१) = सुबह ० गिज्झ (१२१.१३) संग्राह्य = ग्रहण करने जैसा संघस (१३२.९.) संघर्ष = स्पर्धा संजअ (११९.१) सञ्जय = युद्ध ( युद्ध में विजय ) संजत्तग (११६.२५) सांयात्रिक = जहाज से यात्रा करने वाला संजत्तय (१४५.२९) "" "" संतग ( ९४.४) संतिक, सरक=म्बंधी, अपना ही संताक (१३४. १) संत्राणक = कल्पवृक्ष का एक प्रकार ० संपत्ति (१६.१४) सम्पत्ति = संपदा साहिय ( १५५. १) संसाधित = पूरा किया या बीता हुआ संवत्थ ( ८६. ६) संवृत्त = जात, उत्पन्न सक्कज्झय (१५९.१) शक्रध्वज = इन्द्रध्वज सकाल (९९.२३) = समयतर, आगामी कल ( मराठी. सकाळि ) सगल (१७६ २३) सकल = सब ( मराठी. सगळ ) समंत (१२१.२) समस्त ( पासम. में पिंगल से उद्धृत है ) समाहि (१४०.२३) समाधि = समाधान समुदय (१२६.२७) समारंभ, उत्सव समुद्धत (८१२४) समुद्धमात = फूँका या बजाया हुआ सम्म६ (१८१.२९) सम्मर्द = भीड़ ( मोविसंडि.) ०सादु (१७२.१०) स्वादु = स्वादिष्ट (पासम. साउ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520759
Book TitleSambodhi 1980 Vol 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages304
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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