________________
के. आर. चन्द्र *कढिण (१८.१) सन्यासियों का बाँस का बना हुआ एक पात्र (पासम, कढिण
भगवतो सूत्र) कलत्त (१३५.२६) कलत्र-नितम्ब कम्मत (१४५.१०) कर्मान्त-कारोबार, धन्धा, गिरवी रखने का धन्धा. कुसट्ठ (७७.५) कुशार्त=कुशावर्त देश गमेयव्व (१२६.२८) गमितव्य-बीताने योग्य गहभोइय (१३०.३) ग्रहभोगिक-चन्द्रमा • गरिहणा (१७.१४) गर्हणा=निंदा गुलुक (१३६.१९) गुलिक, गुल्म-गुच्छ घाएयव्व (१२९.१४) हन्तव्य (पासम. घाइयव्व) चित्तया (९३.१९) चित्तता, चित्तत्व-चित्तभाव चोक्खीकर. (६९.१९) शुद्ध या स्वस्थ करना जन्नोइय (१९४.६) यज्ञोपवीत जवागू (१४६.२१) यवागू-दलिया, माँड, राब • झरिम (१२३.१७) (नि)झर+इम झरना जाणुक (१७६.१६) ज्ञायक जानने वाला णिपयणी (१९५.७) निपतनी नीचे उतरने की विद्या णिसिणेह (१४०.२३) निःस्नेह-स्नेह रहित णिस्संद (१९९.२२) निष्पन्द=स्थिर णीण (१९५.१९) निम्न-नीचा तकम (१२०.५) तत्क्रम उसी क्रम वाला, उसका अनुकरण तवस्सि (१०१.१७) तपस्विन्-बिचारा, निस्सहाय तिहला (१८९.४) त्रिफला तेयस्सिया (२००.३) तेजस्विता तोयरुह (१२१.२०) कमल • थूर (१२७.१३) स्थूल-मोटा दारहिअ (१४४.१०) द्वारस्थित द्वारपाल दाराहिगअ (१३..१५०) द्वाराधिकृत द्वारपाल, द्वारसेवक दारिट्ठ (१४४.१५) द्वारेस्थ-द्वारपाल दुतिय (१३७.२०) द्वितीय दूसरा दुद्धवाहिय (१८२.७) दुग्धवाहिक-दूधवाला दुप्पिक्ख (१३०.३) दुष्प्रेक्ष्यअदर्शनीय दुय (७८.१५) द्रुत शीघ्र ०धम्मया (१२९.१९, १८४.२८) धर्मता, धर्मत्वधर्मभाव धरणिगोयगे (१३६.४) धरणिगोचरी=मानव स्त्री धाइसंड (१७४.१३) धातकीड-धातकोखंड
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org