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तृतीयोऽवसरः दानं द्वितीयमभयस्य तदद्वितीय धर्मस्य साधनमबाधनधीधनानाम् । -- ---- --- - ---- - - - - - - - - - - - - - दः ॥१॥ वपुरिव वदनविहीनं वदनमिव विलुप्तलोचनाम्भोजम् । एतद्विकलं सकलं - - - - - - - - -------॥२॥ . - - - - - - - - - - - -
----- विधानमनेकधा । निखिलमेतदनेन विवर्जितं
तमसि नर्तनमेव निवेदितम् ॥३॥ . ज्ञानाभ्यासो गुरुजननुति - - - - - - -
__ - --- - -- -- -- ----- --- [१६ १] हानीव प्रकटमहिमश्रीरसेन्द्रान्वितानि । . श्रेयः साध्यं फलमविकलं कुर्युरतद्युतानि ॥४॥ लाभविकलं वाणिज्य भक्तिविहीनं च देवतास्तवनम् । ज्ञान च जोवरक्षणरहित भस्मनि हुतं नियतम् ॥५॥ वदतु विशदवणे कर्णपीयूषवर्ष .. पठतु ललितपाठ भव्यकाव्यं करोतु । . . विमलसकलशास्त्रं बुद्धयतां शुद्धबुद्धि
- यदि न खलु दयालुः स्यात्तदाऽरण्यरोदी ॥६॥ पठितं श्रुतं च शास्त्रं गुरुपरिचरणं च गुरुतपश्चरणम् ।। घनगजितमिव विजलं विफलं सकलं दयावि[ १६-२]कलम् ॥७॥ दीक्षाऽऽदानं गुरुपदयुगाराधनं भावसारं
ज्ञानाभ्यासः सुचिररचितश्चित्तवृत्तेर्निरोधः। गाढाः सोढा दृढतरधिया दुःसहा शीतवाताः
___ वह्नावुप्तं ननु यदि दयाशून्यमेतत् समस्तम् ॥८॥ तदेतद्धर्मसर्वस्वं तदेतद्धर्मजीवितम् । रहस्यमेतद्धर्मस्य यदेतत् प्राणिरक्षणम् ।।९॥
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