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________________ संपा० भोगोलाल ज० सांडेसरा मम रमकइ झमकइ, मातमा मरिहंतना गुण गाइ, मावागमन निवारीइ रे, जिम अजरामर थाउ रे. १ मन रमकइ झमकइ० त्रणसह पंचास धनुष तन जेहनु, सोवन वन सुकांति, त्रिभुवन जंतु सरणि तम स्वामी तू भंजइ भवभंति रे. २ __ मन रमकइ झमकइ. कमला करण हरण दुखदारिद्र, यश चंदन विस्तार, गंग भणइ गुण गातां जगगुरु कोइ न पामइ पार. ३ मन रमक झमकइ० इति गीतं ॥ [११] राग केदारु॥ सकलकलानिधि, त्रिभुवनसोहन, विबुधाजनमनमोहन रे, वामादेवि उपरि उतपन, नीलवन्न मुतन्न रे. मांचली ॥ पास आसपूरण दुखचूरण, अश्वसेनसुत कहीइ रे, वयणसुधाकर, वाणि अमीभर, दरसण सिवसुख लहीइ रे. १ पास आस० . प्रभावती राणी भरतारा, भवभयभंजनहारा रे, सर्वे भूतदयापरसारा, अभयदान दातारा रे. २ पास आस० तप मज्ञान करूं तु वारिउ, जलतु नाग निवारिउ रे, महामंत्र श्रवणे संभारिउ, ते भव सागर तारिउ रे. ३ पास आस० सुरनर यक्ष किंनर तुह्म ध्याई, सेव करइ धरणिंदु रे, गंग भणइ तम चरण सरण मझ, देजो पास जिणिंद रे. ४ पास आस. इति गीतं ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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