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________________ श्रावक कवि गंगकृत गीतो [८] राग केदारु ॥ सोल सहस गोपी वर बांधव, तोरणि आयु जगदानंद, पसूयां अभयदान देई वलीउ, जस पाय सेवइ चुसठि इंद्र. उरवरि हार, सी दूर सरि सोहइ, पहिरणि जादर फाली रे अबकइ झालि जडित मणि माणिक, नवयौवनभरि बाली रे. १. दू० विरहानलचा दुख दुहेला, सोइ पुण सहिणु न जाइ रे माइ; कहि राजलि सुणु सहिय समाणी, प्राणवालिंभ कोइ आण मेलाय. २. उरवरि० शिवादेविनंदन जुगवंदन, यादवकुलि दीपक सिणगार; बालब्रह्मचारी, परिहरी नारी, स्वामी लीधु संयमभार. ३ उरवरि० भागइ अष्टभवंतर नेहा, तुमि इम कांइ नेमिकुमार ? गंमचु स्वामी शिवगतिगामी, पामी राजलि गढ गिरिनारि. ४ उरवरि० इति नेमिनाथ गोतं ॥ राग केदारु ॥ पंचे यंद्रीई ई वसि करू, कूड कपट पंडि पापिई भरिउ, भवसागर हूं किम तरुं ? मझ मोहनी कर्म घणूं , किम करुं ! घणि विषया विषम हूं विभ्रम करी, निज विनय विचार लीमा हरी. १ भव. चरण कमल पास जिण लही, गंग भणइ दुकृत सवि गया वही. २. भव० इति गीतं ॥ [१०] राग केदार ॥ संवरकुलह कल्पवृक्ष चंतामणि राजहंस अवतार, सुरनर किंनर सेवा सारई, ए मुगति तणउ दातार रे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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