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श्रावक कविमोनी केटलीक अप्रकट गुजराती रचनाओ कस की मां ? चचा कसि केरा ? कसि का पुंगडा जोइ ? संसार बाजार मुदा करणा, को थाही कसि केरा रे ! ३
पंच विखत. चलइ हलाहल हराम न खाइ रे, भक्ति तसी कुं होइ, नाहक करइ धरइ परनारी, होइ जग जाइगा सोइ रे. ४
पंच विखत. अलख एक अविनासी अनंत, सेवउ ए समरथ राजा, भीम भणइ ए भवबंधन काटह, दुनिय इस्या नही दूजा रे ५
पंच विखत. इति गीतं ॥
वीतराग गीत
राग केदार कमलि कमलि मानस त मधुकर, नवनव रसरसि पास प्रहि, चक्रध शुद्धिई लई लइ नर तेणि कमलि तू का न रहिं ! रिदय कमल माहि तू निवसइ, रूप न दावइ मापणडां, मुंश परि तोरा भाव जु आवइ, दूरि थिका ते इकडला. १
रिदय. गगनिमंडलि सोहा ते दिनकर, कमलाकर रहि भूमितलिइ, गुरुया गुरूई होइ प्रमाणइ, निज निज हरखइ प्रीति मिलइ. २
___ रिदय कान नयण चिहु अंगलि अंतर, एक न देखइ एक क्षण, वीतराग त परम ध्यानमई, भीम जणाची विनय भणइ. ३
रिदय० . श्री वीतराग गीत ॥ परवतकृत 'प्रामुक पाणी गीत'
राग केदार उत्तम मध्यम अधम धमाधम रंगइ रंगमि लीजइ, अढार वर्ण तणां रे उदक लेइ चूनामाहि भेलीजइ रे. इम जाणी प्रासक पाणी विहर करइ विण काजि रे, सहिजिइ जीव सभाव तणा गुण ताति करंता न भाजइ रे. १
इम जाणी.
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