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________________ संपा० भोगीलाल ज सांडेसरा जीव मायामोहि बाधु भमइ रे, विषय लबधु नरनार करचइ रे. १ दिउ स सोवन धन अनई पांगुरण, भनेकि दान आप्यो संप्रायो रे, नलिनी नीर विण जिम तनु सूकइ, तिम मोह' मन देखी पुलंद भयु रे. २ नीव. अनेकि विज्ञान ज्ञान करुणारस, गीत गान घण निरसि करे रे, वंश चडिउ विसमागति खेलइ, नरंवर पज्ञान करइ रे. ३ जीव० नरंवर चितनां टोप विलंबत ततखिण दीठला तोणइ मुहा मुणि रे, घिगु रे घिगु रे धिगू अथिर संसार जाणी, असिउं रे जाणी धरम .. कर मुणि रे. ४ जीव० केवल ज्ञान ऊपन्नं तितक्षिण, कनकवृष्टि सुरवर करता रे, खमीय अपराध साधु इम बोलइ, चरणि लागी नरवर भणंता रे. ५ जीव० जीव तणी विपरीति गति रे करम, करम तणी न पूजंति कोइ रे, नटू नाटिकणी राउ पटराणी दीक्षा लेइ देवलोकि गया रे. ६ जीव. गाम नयर पुर अनेकि विहार करइ, भविक जीव प्रति बूझविला रे, इलाचीपुत्र शिवपुरि पुहुतला रे, भणइ भीम संघ दुरित हरु रे. ७ जीव० इति गीतं ।। [२] राग विराडी दुनि मेरी मेरी कहता, मोह मच्छर मनि धरता, आगइ मीर मतालिम मोटां, दुनि गया इम करता, दूपद ।। पंच विखत परमेश्वर घ्याणां, हराम कसि का न णा, आजकालि मर जाणा रे जीवडा, जाब खुदा कुं देणा. १ द. कुटंब कारणि पाप करइगा, तू जाणइ घरि मेरा, खांणे कि ताइ सब को मलीआ, कोइ नही कसि केरा. २ पंच विखत० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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