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________________ संपा० भोगीलाल ज. सदिखत बाबर देस हबसी पाहि मसला इणि परि करइ रे खजूर, गल्या रे गविल भणो सहू उपक्की वह तुहि न बूझइ भूर रे. २ इम. जाणी० Jain Education International सात चरव आळां अबराडी हींग घोकडी बांधीजइ, सुगंध बघार सबाद सालणां ते रस मुखि सिउं लीजइ रे ? ३ इस जाणी • आलू चरब अंति ज ऊतारइ, भाजन भलुं नोषाइ, कुण उत्तम कुंण मध्यम कहीइ ? कूडानुं घृत स्वाय रे. ४ इम जाणी ० सचेल सनान करइ रे विमन हूइ तेतइ सहू को देखइ रे माता मुख तं रे निमउं मधु पंचामृतमाहि लेखइ रे. ५ " इम जाणा ० पाक अन्न सीम नवि लागइ तेतु .... .... .... .... शइ, पुनरपि अंगारी पवित्र कीजइ, एह विचार न बूंझइ रे. ७ इम जाणी ० चलणि हेलि जल तूं न निहालइ, दूरि विलोकन कीजइ, भइ परबत कहु किम तुडि कीजइ ? बाउल बाथ न दीनइ, रे. ८ इम जाणी • इम प्रासुक पाणी गीतं ॥ * पानादी किनारी खवाई गई होवाथी, टपकां करेलो अंश वांची शकातो नथी. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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