SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संपा० भोगीलाल ज. सडिसरा पति अपराधी हूं इउ ए, चडिउ चंतामणि हाथि, मणूय जनम नवि ओलिखिउ ए, दीधी बाउलि बाधि. २२ चिहुगतिमाहि रडवडिउ अपार, केही सुक्खि न बइठु, . ... जिहां जाउ तिहां नवनवु आचार मइ दीठु, धन कुटंब कारणिम खत्र बहु गेहि कराव्यां, जे निहां मुक्या तिहां रहिया, को केडि न आव्या. २३ मोह मूर्छा कहूं केतलीय, कहितु न लहूं पार, जुगतारण हवइ तं मिलउ ए, अडविडोमा आधार. २४ सगुरु वचन मह सारधर्म दयामूल दोठुउ, समतारण जे अमीय पाहि, अनंतु मोठु, तोणि संसार विकार भाव हड ऊबीठउ, नाणूं मझ ऊपरि मेह अमीयमइ वूठउ. २५ समकितरयण जु मा बस्युि य, चिंतामणिनी कोडि, सेव करुं हिव तम तणीय, स्वामी, बइ कर जोडि. २६ जोगीस्वर जे हृदयकोसि, स्वामी, तुझ ध्याई, चरणकमल चउसठि इन्द्र, स्वामी, माराहि, स्वामी, तूं मझ माय ताय, तूं पर उपगारी, . बीनती हिव सफल, देव, करि आज अमारी. २७ श्री चंतामण पास जिण, गुणसायर अवधारि, कृपा करु मा ऊपरइ ए, जिम न पर्दू संसारि. २८ इति सा० सूराकृत अंतरंग श्रीचंतामणि पार्श्वनाथ वीनती ॥ संवत १५५९ वर्षे चैत्र वदि १• गुरौ भुवनवल्लभगणिलषितं ॥ २. साह गोविन्दमुत श्रीकरणकृत 'शीलगीत' राग आसाउरी अधरस आगइ विषय अनंत विगूतउ, नरय तणइ धूरि जूतु, हीडइ आवागमन करंतु, कलिकादव अति खूतु रे. जीवनडु जिन जीवनडु माए एह मुरि जिनवर जीवनडु, इसकी सेवा कीजइ, जामण मरण तणा दुख टालइ, ___ मुगति तणां फल लीजइ रे. १ जीवन *भुवनवस्ललगणिर्नु नाम पाछळथी कोईए हरताळ फांसीने छेकी नाल्यु छे, पण वे वाची शकायचे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy