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________________ ४२ संपा० भोगीलाल ज. सांडेसरा के केम ए कहेवं मुश्केल छे. पण भाषानु स्वरूप जोतां एमनु एकत्व संभवित छे. हलू नामे कवि जूना गुजराती साहित्यमां, अहों प्रसिद्ध थता तेना एक मात्र गारिक पद द्वारा प्रथम वार प्रकाशमां आवे छे. .१. अज्ञात कविकृत 'सत्यभामा गीत' । सवि सिणगार तिजीनइ बईठी, दीण दयामणी दीसइ, नयणे नीझरणा वहइ, डसण डसइ मति रीसइ, प्रिय परमव्यां पीहरि जायसिउं, मन गाढं करी रहिसिउं, भई रे. . सत्यभामा अबोलडा लीधा, वैकुंठनाथ मनावइ, पीतांबर करि आंसू लूहइ, वली वली प्रेम बोलावइ, अतिघणु कोप न की नइ रे कामिनी, अम्हनई शोक न भावई रे, ___ भइ रे, सत्यभामा० आंचली. पारिजातिक पुष्प आणियडू रे, वाहली रुखमिणि, राणी, एक पाखडी मोकलता, स्वामी, तिहां हं कां न संभारी ? स्वामीना जे हेत विना जीवो सिउ संसारि ! भइ रे, सत्यभामा० मननां वाला जे हुता, स्वामी, तेहनइ मान ज दीर्घ , . प्राण तिजंत तम्ह आगलि, स्वामी, जोयो, माहर कीचूं, कामणगारी नइ धूतारी तेह सिरिसउं चित्त बाधू , . भइ रे, सत्यभामा० . रुखिमिणि देखतां परिजातक वृक्ष माहरइ आंगणि रोपु, तिहां हीचोल बांधोनइ हीचं, तु ऊतरइ सिरि कोप, फूल तणउ सिरि मुगट भरेसिउं, तु जाइ सिरि ताप, भइ रे, सत्यभामा० वलता विश्वभर कहइ रे, वृक्ष तणी कुण मात्र ? इंद्र इंद्राणी ताहरे पाए लगावू, इम कहइ वैकुंठनाथ, नाथ भणइ रूसणडा भागा, वेदपुराण विख्याता, भइ रे, सत्यभामा० सत्यभामा गीतं ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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