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________________ २. हरदासकृत 'गोरी-सामलीनो संवाद' भील मल्हार एक स्त्रो गोरी, एक सामली रे, दुह सखी लागु वाद, गोरी सोभागइ आगली, सामलडी सरूउ साद रे, किहि गोरी सुणि सामलीरे, कचू गनि भली कहावइ रे १ श्री खंड कपूर गौरचंदन्न रे, जु बाधि जगनु वास रे, सामकी भणइ, कस्तूरडी, तिनु परिमल अधिक प्रकास रे. २ कहि सामलो. गोरी भणइ, सुणि सामलडी रे, तू म वखाणसि भाप रे, धर्म कहइ मजूमालीउं, सामलि अंधारूं सोइ पाप रे, ३ कहि गोरी. सामली भणइ, सुणि गोरडी, हूं आपसि ऊतर वाली रे, गौर वर्ण अंग ताहरउं, एक जीवन कीकी काली रे, १ - कहि सामली. गोरी भणइ, मुणि सामली रे, सोवन अग्नि माहि रे, गौरवर्ण निष्कलंक ते पणि कासल काली थाइ रे. ५ कहि गोरी० सामली भणइ, पुणि गोरडी, तूं आभरण पहिरइ मलूणी रे, काजल रेखडी आंखडीयां सारइ तु सलूणी रे. ६ ___ कहि सामली० गोरी भणइ, सुणि सामली रे, सुधानिद्ध मयंक रे, तिहां मली एक रेख सामली, सहू कहइ सकलंक रे. ७ कहि गोरी० सामलडी भणइ, सुणि गोरडी रे, तू जोइ न हृदय निराली रे, कामिनी सोभा कुचि करी, तेहनइ मुकटि रेखा काली रे. ८ कहि सामली. गोरी भणइ, सुणि सामली, तू लाजसि, हूं कहूं पाठ रे, अंगवरण स्तन ताहरूं, जिसउ सुरमुख छंडिउ काठ रे. ९ कहि गोरी. सामली भणइ, सुणि गोरडी, कामिनी तूं धर धीर रे, चतुरमज चऊद भुवन तणु, तेह्नु सामलवन्न सरीर रे. १० कहि सामली. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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