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चित्रा प्र. शुकं
मांथी थती अर्थप्रतीतिमां भावक थोड़ो मानसिक आयास अनुभवे छे. रसरूपी अंतिमं लक्ष्य सुधी पहोंचतां, शब्दोना श्लेषने समजवा मनने थोडुं थोभवुं पडे ले तेथी असंलक्ष्यक्रमव्यङ्गय एवा रसध्वनिमां आनन्दवर्धने लेषने आवकार्यों नथी. परन्तु लेषनो चमत्कृतिने ध्यानमलई शब्दशक्तिमूलध्वनिमां आवी चमत्कृतिने मान्य राखी छे. कविओने प्रिय एवा श्लेष अलंकार आलंकारिकोए काळजीथी विस्तृत निरूपण कयुं छे. उद्भटे श्लेष अलंकारनी शास्त्रीय व्याख्या अपो. जगन्नाथे आ अलंकारनां समग्र वासांनुं निरूपण कर्यु. जगन्नाथनु श्लेषनिरूपण तेना पूर्ववत्तीं आचार्योनां निरूपणमां जे कांई अचोक्कस हतुं तेने गाळी नांखे छे.
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