________________
चित्रा प्र. शुक्ल
वा २लषः .
*लेषनो बीजा अलंकारो साये मात्र संकर ज संभवित छे एयु मम्मट माने छे. रुय्यक श्लेषना त्रण प्रकारो आपे छे : श्लेष द्वारा आवता बे अर्थोमाथी (१) बंने प्रकृत हाय (२) वंने अपकृत होय (३) एक अर्थ प्रकृत अने बीजो अपकृत होय. रुपक आश्रयाश्रयिभावने आधारे श्लेषना शब्दश्लेष, अर्थश्लेष अने उभयश्लेष एवा विभागो पाडे छे. उद्भटने अनुसरीने सय्यक श्लेषने बाधक गणी ते बीजा अलंकारोन प्रतीतिने रोके छे एवु रुय्यक नोंधे के. जो के रुय्यक पोते मम्मटना मत तरफ दळता लागे छे अने व्यक्तिगत रोते एवु मानता लागे छे के श्लेषर्नु स्वतंत्र क्षेत्र छे तेथी बीजा अलंकारो साथे तेनेा संकर संभवित छे. अलंकारसर्वस्वना टीकाकार जयरथ नोंधे छे : तदेवं स्वमताभिप्रायेणास्यालङ्कारान्तरवदन्यालङ्कारैः सह बाध्यबाधकभावं सङ्कीर्णत्वं च प्रकाश्य... पोते भिन्न मत धरावता होवा छतां प्राचीन आलंकारिकानु मान जाळववा माटे रुय्यक श्लेषने बाधक गणावे छे. जयरथ नोंध छ : अत्र च ग्रन्थकृता श्लेष: सर्वालङ्कारापवाद इति न केवलं प्राच्यमतानुमारमुक्तं यावदपह्नवपर्यवसायिमादृश्यरूपेोऽपहनुतिभेदोऽपि तन्मतानुसारमेवोक्तः। शोभाकरमित्र श्लेषने अर्थालंकार गणी तेना शब्दश्लेष अने अर्थ-. . श्लेष एवा बे भाग पाडे छे. तेओ उभयश्लेषने स्वीकारता नथी. तेओ श्लेषना. चार प्रकारे। आपे छे. वे विशेष्यो वच्चेना साम्यनु (१) एक ज शब्द द्वारा (२) भिन्न शब्दो द्वारा (३) विशेष्यवाचक बे शब्दोमांथी गमे ते एक शब्द द्वारा (४) विशेषण द्वारा रजु करवामां आवे ते प्रमाणे तेओ टेषना प्रथम चार प्रकारो पाडे छे. आचारे प्रकारोमां बने अर्थों (१) प्रकृत होइ शके अथवा (२) अप्रकृत होइ शके तेथी आठ प्रकारो थाय. वळी एक अर्थ प्रकृत अने बीजो अप्रकृत हेाय त्यारे (१) प्रकृत विशेष्यवाचक शब्द द्वारा (२) अप्रकृत विशेव्यवाचक शब्द द्वारा (३) भिन्न शब्दो द्वारा (४) समान विशेषणो द्वारा साम्यनु प्रतिपादन थाय. एटले बधुं मळीने तेओ बार प्रकारे। आपे छे. शोभाकरमित्र माने छे के श्लेषनु पोतार्नु स्वतंत्र क्षेत्र छे. उद्भटना मतनो टीका करतां तेओ कहे छे के श्लेष ज्यारे बीजा अलंकारो साथे मिश्ररूपे आवे त्यारे केटलीक वखत ते बीजा अलंकारोना अंगरूप आवे छे, केटलीक बखत बीजा अलंकरानो प्रतोतिने ते रोके छे, केटलीक वखत बीजा अलंकारो द्वारा तेनी प्रतीति बाध्य बने छे अने केटलीक बखत ते बोजा अलंकारोना अनुपाण करूपे आवे छे. शोभाकरमित्रनु मानवुछ के श्लेषतुं पातानुं क्षेत्र छे. विश्वनाथ मम्मट अने रुप्यकना मताने भेगा करे के. मम्मटने अनुसरीने ते श्लेषतुं निरूपण शब्दाअलंकार तेमज अर्थालंकार बनेमां करे छे. रुद्रट अने मम्मटने अनुसरोने ते भो शब्दश्लेषना आठ प्रकार आपे छे. वळी तेआ श्लेषने अर्थालंकार तरीके पण निरूपे छे. विद्यानाथ श्लेषने शाब्दिक साम्प तरीके आळखाबे छे. तेओ सभंग के अभंग एवा प्रकारो आपता नथी. श्लेषनुं निरूपण तेओ अर्थालंकारामां करता होवाथी श्लेष तेमना मते अर्थालंकार छे एवं कही शकाय. श्लेषना तेओ त्रण प्रकारे आपे छे; ज्यारे बने अर्थो (१) प्रकृत होय (२) अप्रकृत होय अने (३) एक अर्थ प्रकृत अने बीजो अप्रकृत होय, अप्पय्य दीक्षित श्लेषने अर्थालंकार तरीके निरूपे छे. अने तेना सभंग अने अभंग एवा वे विभागो पाडे छे. वळी श्लेष द्वारा आवता बे अर्थो (१) प्रकृत (२) अप्रकृत के (३) एक प्रकृत अने बीजो अप्रकृत होप ते प्रमाणे पण तेओ विभाग पाडे छे.
जगन्नाथनु श्लेषनिरूपण जोतां एवं लागे छे के तेओ मम्मट अने रुय्यकना मतोन मिश्रण करे छे. मम्मटे आपेला शब्दश्लेषना आठ प्रकारो तेमणे स्वीकार्यां नथी परन्तु मम्मटे भापेला शब्दश्लेषना सभग अने अभंग एवा बे भेदो तेमणे स्वीकार्य छे. मम्मटना अर्थश्लेषने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org