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________________ श्लेषभलंकारर्नु स्वरूप अभिप्राय एवो छे के सभंगश्लेष बे भिन्न शब्दोमा छे; (दा. त. विष्णुना अभिप्रपन्न' अने 'विष्णुनाभौ प्रपन्न)' परंतु आ बे भिन्न शब्दो एकसरखा (विष्णनाभिप्रपन्न) लागे छे. लाकडाना बे टुकडा भिन्न होय पण उपरथी रंगनो गाढो लेप करवामां आवे तो जेम एक ज लाकडं देखाय तेम अहीं बे भिन्न शब्दो एकरूप लागे छे. शब्द ज मुख्य होवाथी सभंगश्लेष शब्दालंकार थाय, ज्यारे अभंगश्लेष अर्थालंकार थाय. एक ज दांडो पर वे फळो लटकतां होय तेम एक ज शन्दमांथी बे भिन्न अर्थो निष्पन्न थाय छे. अभंगश्लेषमां शब्दोनो क्रम बदलातो नथी तेथी त्यां वे भिन्न शब्दो छे एवं मनाय नहीं अने ते ज कारणे तेने शब्दालंकार मानवो योग्य नथी. तेथी अभंगश्लेषने अर्थालंकार मानवो एवो रुय्यकनो मत छे. स्वतंत्र होवा छतां श्लेष अनेक अलंकार साथे संकीर्ण बनी वाणीमां नवी चमत्कृति लावे छे. जगन्नाथे करेली श्लेषविचारणा पछी आपणे अन्य आलंकारिकोनु श्लेषनिरूपण जोइश. भामहे श्लेषनी व्याख्या आ प्रमाणे आपी छः उपमानेन यत्तत्त्वमुपमेयस्य साध्यते । गुणक्रियाभ्यां नाम्ना च श्लिष्टं तदभिधीयते ॥ भामहे आ अलंकारने श्लिष्ट एवु नाम आप्यु छे. तेओ नोंधे छे के श्लेष सहोक्ति, उपमा के हेतु अलंकार साथे मिश्रित बनी शके. भामहनी व्याख्या दर्शावे छे के भामहने मते श्लेष अर्थालंकार छे तेम ज साम्यमूलक छे. दंडी श्लेषना अभिन्नपद तेमज भिन्नपद एवा भाग पाडे छे. दंडीनो अभिन्नपदश्लेष ते पछीना आलंकारिकोनो अभंगश्लेष बन्यो. उदभटने मते श्लेष अलंकार उपमा के रूप जेवा अलंकारोने चारुता आपतो होवाथी ते अलंकारोने बाधक छे. रुद्रट श्लेषने शब्दालंकार तेमज अर्थालंकार तरीके निरूपे छे. तेओ शब्दश्लेषना आठ विभागो आपे छे. (१) वर्ण (२) पद (३) लिंग (४) भाषा (५) प्रकृति (६) प्रत्यय (७) कारक अने (८) वचनमां श्लेष होई शके एवं तेमनु मानवु छे. अर्थश्लेषना तेओ दस प्रकार आपे छे: (१) अविशेष (२) विरोध (३) अधिक (४) वक्र (५) व्याज (६)उक्ति (७) असंभव (८) अवयव .(९) तत्त्व (१०) विरोधाभास. रुद्रट माने छे के श्लेष अलंकार उपमा अने समुच्चय अलंकारो साये मिश्र थई शके. उपमा अने समुच्चय अर्थालंकारो होवा छतां मात्र शाब्दिक साम्यने आधारे पण आ बने अलंकारो थई शके. रुद्रटने अनुसरीने मम्मट पण श्लेषने शब्दालंकार तेमज अर्थालंकार गणी शब्दश्लेषना आठ प्रकारो आपे छे. आ शब्दश्लेष तेज पछीनो सभंगश्लेष. आठ प्रकारो उपरांत मम्मट शब्दश्लेषनो एक नवमो प्रकार आपे छे, जेमां प्रकृत भिन्न होय तो पण शब्द अभिन्न रहीने बे अर्थो आपे छे. आ नवमो प्रकार तेज पछीना आलंकाकारिकोनो अभंगलेष थयो अर्थालंकारोना प्रकरणमां श्लेषनु अर्थालंकार तरीके निरूपण करी मम्मट अमावे छे के अहीं पदो बदलातांबे अर्थनी प्रतीति थाय ते मम्मटना आ प्रकारना श्लेषने जगन्नाथे शुद्धश्लेष करो छे. कोई पण अलंकार शब्दनो छे के अर्थनो तेनो निर्णय करवा माटे मम्मटे अन्वय अने व्यतिरेकनो सिद्धांत अपनान्यो छे. बीजा अलंकारोनी जेम श्लेषनु स्वतंत्र क्षेत्र होवाथी ते बीजा अलंकारो साथे संकीर्णरूपे आवी शके एवं मम्मट माने छे. पोतानं स्वतंत्र क्षेत्र होवाथी बीजा अलंकारोनी प्रतीतिमां श्लेष बाधक थतो नथी. बे अलंकारोमांथी एकने पोतानु स्वतंत्र क्षेत्र न होय तो ज बे अलंकारो वच्चे बाध्यबाधकभाव संभवी शके. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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