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चित्रा प्र.शुक्ल
अर्थनी प्रतीति पहेली थाय छे. ज्यारे मिलष्ट शब्दोने कारणे अप्रकृत अर्थनो प्रतीति थाय छे परंतु अप्रकृत अर्थनी प्रतीति व्यंजनाव्यापारथी थती नथी. समासोक्तिमां पण अप्रकृत अर्थनी प्रतीति प्रलेषथी ज थाय छे, व्यंजनाथी नहीं एवो अप्पय्य दीक्षितनो मत छे. जगन्नाथ आ मतनी टीका करे छे. पोताना समर्थनमां तेओ मम्मटनो मत टांके छे. मम्मटन मानवं छे के अनेकार्थ शब्दोनी अभिधाशक्ति नियंत्रित होय, त्यारे वाच्यार्थ उपरांत थती बीजा अर्थनी प्रतीति व्यं जनाथी थाय छे. शब्दशक्तिमूलध्वनि द्वारा व्यंग्य बनती उपमा अभिधाना नियंत्रण पर आधार राखती नथी कारण के अभिधा नियंत्रित न होय तो पण उपमानी प्रतीतिमां वांधो आवतो नथी. वळो अप्रकृतनी प्रतोति कदी अभिधाथी थती नथी. अप्पय्य पोते ज कहे छे के अभिधा नियंत्रित छे. पूर्वापर संदर्भ पण अभिधान नियंत्रण करी वाच्यार्थ आपे छे माटे अप्रकृतनी प्रतीति काजे व्यंजनाव्यापारनो स्वीकार करवो ज जोईए. वळी योग्यतानो अभाव होय, त्यां अभिधा अर्थ आपी न शके परंतु व्यंजना अर्थ आपी शके छे. अभिधानी योग्यता के अयोग्यतानो निर्णय वक्तानां वैशिष्टय पर आधार राखतो नथी. मात्र व्यंजनाव्यापार ज वक्ताना वैशिष्टय अनुसार प्रवर्ते छे.. ' तेथी आकृत अर्थ अभिधाव्यापार द्वारा वाच्य बनतो नथी. समासोक्तिमां पण अप्रकृत अर्थ नी प्रतीति व्यंजनाव्यापारथी ज थाय छे. अने तेथी ज समासोक्तिने गुणीभूतव्यंग्यनो एक प्रकार मानवामां आवे छे. रूढिना बळथी अप्रकृत अर्थनी प्रतीति थाय त्यारे पण अभिधान्यापारने अवकाश रहेतो नथी. तेथी आवां उदाहरणोमां व्यंजन व्यापारथी ज अप्रकृत अर्थनी प्रतीति थाय छे.
आ पछी जगन्नाथ बीजा महत्त्वना प्रश्ननी चर्चा करे छे. 'रागावृतो क्ल्गुकराभिमृष्टं श्यामामुखं चुम्बति चन्द्र एषः ।' मां समासोक्ति अलंकार छे. आ पंक्तिमा चन्द्रः ने स्थाने राजा शब्द मूकवामां आवे तो शब्दशक्तिमूलध्वनि थाय. बने पंक्तिओमां अप्रकृत व्यवहारनी प्रतीति श्लिष्ट विशेषणोने कारणे ज थाय छे परंतु समासोक्तिमां व्यंग्य अर्थने गाण मानीने समासोक्तिवाळां काव्योने गुणीभूतव्यङ्गयनी कोटिमां मुकवामां आवे छे तो शब्दशक्तिमूलध्वनिमां आ ज कोटिना व्यंग्य अर्थ ने प्रधान मानी ध्वनिकाव्य गणवामां आवे छे. बने उदाहरणोमां प्रकृत अर्थ प्रधान छे अने व्यंग्य अप्रकृत अर्थ बंने उदाहरणोने चारुता आपतो होवाथी गौण छे. तेथी बने उदाहरणोमां व्यंग्य अर्थने गौण मानवो जोईए. बने उदाहरणोमां भेद मात्र एटलो ज छे के उदाहरणमा विशेष्य-चन्द्रः-श्लिष्ट नथी उारे बीजां उदाहरणमां विशेष्य-राजा-रिलष्ट छे. आ एक मात्र कारण बीजा उदाहरणमां व्यंग्य अथेने प्रधान मानवा माटे अपूरतु लागे छे. अप्पय्य दीक्षित कदाच एवो जवाब आपे के समासोक्तिमा मात्र अप्रकृत व्यवहारनो आरोप छे ज्यारे ध्वनिमां अप्रकृत अर्थनो आरोप छे. आ मत स्वीकारीए तोपण बनेमां अप्रकृत अर्थने तो गोण ज गणवा जोइए कारण के ते प्रकृत अर्थने चारुता आपे छे. जगन्नाथनु सूचन छे के आq थतु होवाथी समासोक्ति अलंकारना बे प्रकारो मानवा जेमां (१) विशेष्यो श्लिष्ट होय (२) विशेष्यो श्लिष्ट न होय शब्दशक्तिमूलध्वनिने गुणीभूतव्यंग्य काव्यनो प्रकार मानवो जोइए एवो जगन्नाथनो मत छे.
लेष शब्दअलंकार छे के अर्थालंकार ? श्लेष-सभंग तेमज अभंग-अर्थालंकार छे एवं उदभट अने तेमना अनुयायीओ माने छे. मम्मटनो अभिप्राय एवो छे के सभंग अने अभंग श्लेष शब्दालंकारो छे कारण के शब्दोमा परिवर्तन थतां लेषन अस्तित्व रहेतु नथी. शुद्धश्लेषने मम्मट अर्थालंकार गणे छे कारण के ते अर्थ पर आधार राखे छे. अलंकारसर्वस्वकार रुग्यकनो
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