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विक्रान्तकौरव में ऋषभदेव जैसा कि महाकवि हस्तिमल्ल ने विक्रान्तकौरव में कई स्थलों पर उल्लेख किया है, ऋषभदेव ने असि मसि कृषि आदि छः वृत्तियों को प्रकट किया था, मोक्ष मार्ग को दिखलाया था, जगत् के कल्याणार्थ-दानादि का माहात्म्य संसार के सामने रखा था। वे पापगदि का शमन करने वाले है। पौराणिक विवरण से भो सिद्ध है कि तीर्थकरों के अवतरित होने का मुख्य प्रयोजन जैन मुनिओं के आचरण का आदर्श प्रस्तुत करना, आचार और नियम पालन की शिक्षा देना तथा जैन धर्म का प्रचार करना रहा है। इस तीर्थकरों में भव्य जीवों को संसार समुद्र से तारने का सामर्थ्य भी है। "
परमात्मप्रकाश के अनुसार जो जिनेन्द्र देव हैं वहीं परमात्मप्रकाश भी हैं। केवल दर्शन, केवल ज्ञान, अनन्त सुख, अनन्त वीर्य रूप अनन्त चतुष्टय से युक्त होने के कारण वही जिन देव हैं। वही परम मुनि अर्थात् प्रत्यक्ष ज्ञानी है। जिस परमात्म को मुनि परमपद हरि, महादेव, ब्रह्म, बुद्ध तथा परमप्रकाश नाम से कहते हैं, वह रागादि से रहित जिन देव ही है। उसीके ये सब नाम हैं ।' महाकवि हस्तिमल्ल ने प्राणीमात्र के स्वामी (भूतनाथ) भगवान जिनेन्द्र का वर्णन इस प्रकार किया है
___“जो मूर्ति के अभाव से आकाश हैं' पापसमूह को जलाने से अग्नि है, क्षमा से पृथिवी है, निष्परिग्रह से वायु है, अत्यधिक शांति से युक्त होने के कारण जल हैं, स्वकीय आत्मा में स्थिर होने से सुयज्वा-याजक है, सौम्यता के संयोग से चन्द्रमा हैं, तेज के सन्निधान से सूर्य है तथा विश्व से परे हैं वे भूतनाथ (प्राणीमात्र के स्वामो) भगवान् जिनेन्द्र आप सबके भूति (ऐश्वर्य) के लिए हों।" ,
"जिन स्वयंभू ब्रह्मा की उत्पत्ति नाभि-नाभिराज नामक कुलधर से हुई है तथा जो समस्त पदार्थों के उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य का साक्षात् करने वाले है, वे भगवान् ऋषभदेव सभी के कल्याण के लिए हो।"२४
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१९-प्रवचनसार (८१ से १६५ ई० के बीच) पृ० ३-४ । २०.-परमात्मप्रकाश पृ. ३२६, २, १९८ । २१-परमात्मप्रकाश पृ०३३७, २, १९९ । २२--वही, पृ० ३३५ - ३३८, २,२०० ।
जो परमप्पउ परम पउ हरि हरु बंभुवि बुद्ध परमपयासु भणंति मुणि सो जिणदेव विसुद्ध ।
द्र० कपिलदेव पांडेय विरचित मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ८७ से ९३ । २३ विक्रान्तकौरव. ६.५१ । २४ वही, ६.५२ ।
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