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stara faranव में तीर्थंकर ऋषभदेव
बापूलाल आंजना
तेरहवीं शती में जैन कवियों ने संस्कृत नाट्य साहित्य का पर्याप्त संवर्धन किया है। इनमें महाकवि हस्तिमल्ल का नाम अग्रणी है । इनके लिखे चार रूपक विक्रान्त कौरव ( सुलोचना ), मैथिलिकल्याण, अञ्जनापवनञ्जय और सुभद्रा हैं ।
हस्तिमल्ल को पाण्ड्य नरेश का समाश्रय प्राप्त था ।' कवि की कुछ रचनाओं का काल १३ वीं का अन्तिम भाग व कुछ रचनाओं का काल १४ वीं श० का प्रारम्भ रहा होगा ।" हस्तिमल्ल के ४ रूपकों में से ३ का कथानक जैन पुराणों पर आधारित है । विक्रान्तकौ रव की कथावस्तु का आधार जिनसेन का महापुराण है । विक्रान्तकौरव में जयकुमार व सुलोचना के स्वयंवर की कथावस्तु प्रस्तुत की गई है। जयकुमार व सुलोचना का विस्तृत जीवनचरित जिनसेन के महापुराण में वर्णित है ।
'सुभद्रा' हस्तिमल्ल की नाटिका है। इसके चार अंको में विद्याधर राजा नमि की भगिनि व कच्छराज की पुत्री सुभद्रा का तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत से विवाह की कथा है।
अञ्जनापवनञ्जय की कथा का आधार विमलसूरि का पउमचरिउ है । महेन्द्रपुर की कुमारी अञ्जना स्वयंवर में विद्याधर पवनञ्जय का वरण करती है । बाद में वह हनुमत् को जन्म देतो है । " हस्तिमल्ल के लिखे आदिपुराण व श्रीपुराण कन्नड़ी भाषा में विरचित है ।
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कवि के इन ग्रंथों के अध्ययन से उनकी आदि तीर्थकर भगवान् ऋषभदेव के प्रति अगाध भक्तिभावना का परिचय प्राप्त होता है ।
भगवान् ऋषभदेव के पूर्व भरतक्षेत्र भोगभूमि थी । कल्पवृक्षों से ही सारा कार्य चलता था । उनके समय में भोगभूमि नष्ट होकर कर्मभूमि का प्रारम्भ हुआ । भगवान् ऋषभदेव ने असि, मत्री, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और विद्या इन छह कर्मो का उपदेश देकर सबको निर्वाह - आजीविका की शिक्षा दी। उन्होंने ही नगर, ग्राम आदि का विभाग करवाया, वर्ण व्यवस्था व राज्यवंशों की स्थापना की । ऋषभदेव ने जिन चार राजाओं का अभिषेक किया था उनमें वाराणसी के राजा अकम्पन और हस्तिनापुर के राजा सोमप्रभ भी थे। जब भगवान् ऋषभदेव संसार से विरक्त हो अरहन्त अवस्था को प्राप्त हुए तब उन्होंने अपने पुत्र भरत चक्रवर्ती को राज्यसिंहासन पर अभिषिक्त किया। उसी समय सुलोचना व जयकुमार का स्वयंवर हुआ था जब भरत चक्रवर्ती राज्यसिंहासन पर अधिष्ठित थे ।
विक्रान्तकौरव के मंगलाचरण में जगत् के कल्याण के लिए भगवान् ऋषभदेव की वन्दना की गई है “जिन भगवान् जिनेन्द्र - ऋषभदेव ने पृथिवी पर असिमषि आदि की वृत्ति प्रकट की (कर्मभूमि के प्रारंम्भ में कल्पवृक्षों के नष्ट होने पर जिन्होंने शस्त्रविद्या तथा लेखनविद्या आदि ६ कर्मो का उपदेश देकर प्रजा को आजीविका का साधन बतलाया था ) । जिनके पुत्र भरत लोक में सर्वश्रेष्ठ सम्राट् (चक्रवर्ती) हुए हैं और इन्द्रों के मुकुटों की कलगियों से जिनके चरणकमल १ - विक्रान्त कौरव पन्नालाल जैन संपादित, चौखम्बा से प्रकाशित । १.४०, और अञ्जनापवनंजय श्री पटवर्धन संपादित भूमिका पृ० ६६ पर उद्धृत - श्रीमत्पाण्डयमहीश्वरे... इति । २-० रामजी उपाध्याय विरचित मध्यकालीन संस्कृत नाटक पृ० २२५. ३ - संभवतः कवि ने उदयनराज, भरतराज, अर्जुनराज व मेघेश्वर चार और नाटक भी लिखे थे ।
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