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________________ १२० स्वाध्याय है इसमें सन्देह नहीं है। अच्छा होता यदि इसमें मूल और टीकागत विशेषनाम और पारिभाषिक शब्दों की सूची भी दी जाती । अवतरण सूची में ऐसी कई गाथाएँ हैं जिन का मूल थोड़ेसे ही परिश्रम से दिया जा सकता था । आशा करते हैं कि अगले भागों में परिष्कर्ता इस में विशेष ध्यान देंगे। दलसुख मालवणिया जैनधर्म में दानः-ले० उपाध्याय पुष्करमुनिजी, संपादक-देवेन्द्रमुनि शास्त्री और श्रीचन्द सुराणा, प्र० श्री तारकगुरु जैन ग्रन्थमाला, उदयपुर, १९७७, मूल्य २० रुपये । सभी धर्मों में दान का महत्त्व है। दान के विषय में प्रस्तुत ग्रन्थ में सर्वेक्षण किया गया है। श्री उपाध्याय पुष्करमुनिजी के व्याख्यानों के आधार पर संपादकों ने प्रस्तुत पुस्तक सौंपादित की है । विषय हैं- दानः महत्त्व और स्वरूप; दानः परिभाषा और प्रकार; दानः प्रक्रिया और पात्र । दान की इतनी विस्तृत चर्चा सदृष्टान्त अन्यत्र देखने को नहीं मिली। दलसुख मालवणिया विद्वत् अभिनन्दन ग्रन्थ-स. लाल बहादुर शास्त्री आदि अनेक विद्वान, प्र. अखिल भारतीय दिगंबर जैन शास्त्रि परिषद् , गौहाटी, १९७६ । इसमें प्रथम खंड में आचार्य, मुनि, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिका एवं ब्रह्मचारी आदि का जीवन परिचय है। द्वितीय खंड में परम्परागत संस्कृतिके वर्तमान साहित्यिक विशिष्ट . जैन विद्वानों का जीवन परिचय हैं। तृतीय खण्ड में जैन विद्वानों, जैन निष्णातो, जैन साहित्यकारों एवं कविओं का वर्णमालाक्रमानुसार परिचय है। चौथे खंड में साहित्य और संस्कृति के विषय में विद्वानों के लेखों का संग्रह है । सूचियों में केवल दिगंबर संप्रदाय को ही प्राधान्यता दी गई है। अपवाद रूप से ही श्वेताम्बरों में से अगरचंद नाहटा जैसों का नाम संमिलित है । संदर्भ ग्रन्थ के रूप में यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी हैं। दलसुख मालवणिया गाथामाधुरो-अनु० डॉ. हरिवल्लभ भायाणी, प्र० वोरा एन्ड कंपनी, अहमदाबाद, १९७६, मू. १०) रुपिया । श्री उमाशंकर जोषए गंगोत्री ट्रस्टनी स्थापना करीने 'कविता संगम' नामे निशीथ पुरस्कार ग्रन्थमालामा विविध भाषाना काव्योनो गुजराती भाषामा अनुवाद करावी प्रकाशित करवानी योजना करी छे. तेना ७ मा ग्रन्थरूपे हाल कविना प्राकृत गाथाकोषमाथी चुटो ने २७५ मुक्तको आ पुस्तकमां आपवामां आव्या छे. आमां मूळ गाथाओ पण गुजराती लिपिमां छापवामां आवी छे. अने तेनो गुजराती अनुवाद डॉ. भायाणीए करेलो छे. गाथाकोषना हिन्दी-मराठीअंग्रेजी आदि भाषामा अनुवादो उपलब्ध छे. तेमां आ एक विशेष उमेरो छे. डॉ. भायाणीए विस्तृत प्रस्तावनामां मुक्तको विषे जे इतिहास अने रसदृष्टिए माहिती आपी छे ते विद्वानो अने रसिकजनो ने उपयोगी छे. दलसुख मालवणिया ऋषभदेव : एक परिशोलन ले० देवेन्द्रमुनि शास्त्री, प्र० श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थमाला, उदयपुर, दूसरी आवृत्ति, १९७७, रुपया १५) । 'ऋषभदेव' का संशोधित और परिवर्धित यह द्वितीय संस्करण है । इस ग्रन्थ में लेखक ने ऋषभदेव के चरित में उपलब्ध जैन-जनेतर समग्र सामग्र का उपयोग किया है। अतएव संशोधक के लिए एक स्थान में सम्पूर्ण सामग्री उपलब्ध कराने का श्रेय लेखक को है। मूल प्रश्न यह है कि वेद या वैदिक साहित्य में प्रसिद्ध ऋषभ नाम से जो व्यक्ति था क्या वहो जैनों का ऋषभदेव है ? या नामसाम्य मात्र है ? वैदिक व्यक्ति ऋषभ का जो रूप है क्या वही रूप जैनों को ऋषभदेव के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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