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________________ REVIEW स्वाध्याय श्रोराजेन्द्रज्योतिः-श्रीमद् राजेन्द्र सूरिजन्मसार्द्ध शताब्दी ग्रन्थ, सं. डॉ. प्रेमसिंह राठौड, अ. भा. श्री राजेन्द्र जैन युवक परिषद् , मोहनखेडा १९७७, मूल्य ३१ रुपये। 'अभिधान राजेन्द्र' नामसे प्रसिद्ध जैनविश्वकोष के कर्ता आचार्य श्रीराजेन्द्रसूरि की स्मृतिमें यह ग्रन्थ प्रकाशित है। इसमें आचार्यश्री के अनेक ग्रन्थो का तथा उनके जीवन का परिचय तो है ही उपगंत उनकी परंपरामें होनेवाले आज तक के आचार्यादिका भी परिचय है। अतएव उस संप्रदाय के इतिहास के लिए यह सामग्रो उपयोगी सिद्ध होगी । इसके उपरांत इसमें जैनसमाज, जैनतीर्थ तथा जैनदर्शन संबंधी अनेक विद्वानों के लेख भी मुद्रित हैं, जिससे पुस्तक की सामग्री बहुमूल्य हो गई हैं । लेख हिन्दी गुजराती तथा अंग्रेजी भाषा में हैं । प्रकाशक संस्था का भी परिचय दिया गया है। यदि इन पृष्ठों का उपयोग अन्य सामग्री के लिए किया जाता तो अच्छा होता या ग्रन्थकलेवर कम होता तो यह भी उचित था । दलसुख मालर्वाणया मिथ्यात्वीका आध्यात्मिक विकास-श्रीचन्द्र चोरडिया, प्र. जैन दर्शन समिति, १६सी, डावर लेन, कलकत्ता-२९।१९७७, मूल्य १५ रुपये । श्री चोरडियाजी ने इसमें जैनागम और उनकी टीकाओं में से षट्खंडागम और उसकी टीका तथा कर्मग्रन्थो में से मिथ्यात्वी जव भो आत्मविकास कर सकता है इस बात को अनेक अवतरण देकर सिद्ध किया है। विशेषता यह है कि आगमों में जितने भी अवतरण इस विषय में उपलब्ध थे उनका संग्रह किया है इतना ही नहीं आधुनिक काल के ग्रन्थों के भी अवतरण देकर ग्रन्थको संशोधकों के लिए अत्यंत उपादेय बनाया है इसमें सन्देह नहीं है । किन्तु अवतरण देने में विवेक रखना जरूरी है । जो बात प्राचीन अवतरणों से सिद्ध है उसके लिए आधुनिक अवतरण जरूरी नहीं है । एक ही बात खटकती है कि मूल प्राकृत-संस्कृत अवतरणो को कहीं कहीं विशुद्धरूप में नहीं छापा गया। थोड़ी सी सावधानी इसमें रखो जाती तो यह ग्रन्थ अत्यन्त विशुद्धरूप में मुद्रित किया जा सकता था। फिर भी श्री चोरडियाजी ने इस विषय में जो परिश्रम किया है वह धन्यवाद के पात्र है । यदि अन्त में शब्द-सूची दी जाती तो सोने में सुगंध होती । यह ग्रन्थ इतःपूर्व प्रकाशित लेश्याकोष, क्रियाकोष की कोटि का ही है । इन ग्रन्थों में भी श्री चोरडियाजी का सहकार था । हमें आशा है कि वे आगे भी इस कोटे के ग्रन्थ देते रहेंगे। दलसुख मालवणिया - आचारांगसूत्रसूत्रकृतांगसूत्र'च-: सं. श्रीसागरानन्द सूरीश्वराः, परिष्कर्ता-श्री जंबूविजयजी, प्र. मोतीलाल बनारसीदास, देल्ही, १९७८, मू १२०) रुपये ।। श्री लाला सुन्दरलालजी की स्मृति में 'लाला सुन्दरलाल जैन आगम ग्रन्थमाला' शुरू की गई है उनका यह प्रथमभाग है। इसमें आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित शीलांकाचार्य की टीका समेत आचारांग और सुत्रकृतांग इन दो सूत्रों को फोटोग्राफ पद्धति से मुद्रित किया गया है। इसमें मुनिश्री जंबूविजयजी ने अपनी ओर से प्रस्तावना, विषयानुक्रम, शुद्धिवृद्धि पत्र और टीकागत उद्धरणों का परिशिष्ट जोड़ा है। शुद्धि वृद्धि परिशिष्ट के लिए उन्होंने मुनिराज श्री पुण्यविजयजी की सामग्री का सदुपयोग किया है। कई वर्षों से अनुपलब्ध ये ग्रन्थ इस रूप में उपलब्ध कराकर परिष्कर्ता श्री जम्बूविजयजी तथा प्रकाशक ने विद्वानों का बड़ा उपकार किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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