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सिद्धसेनसृरि-विरचित
(३) पु. ला.द.विद्यामंदिरमांना स्व, मुनिश्री पुण्यविजयची संग्रहमांथी मळी आवेल एक छूटा पत्रनी-कागळनी-प्रत. आ प्रत लगभग अढारमी सदीनी अने अशुद्ध होवा छतांबे चार स्थानोना निर्णय माटे उपयोगी होई, तेनो पण संपादनमा समावेश करी, पाठांतरो नोंध्या छे.
समग्र स्तोत्र 'आर्या' छंदमां निबद्ध छे कृतिनो संक्षिप्त भावानुवाद आ प्रमाणे छे :--
कवि प्रारंभमां देव, दानव अने विद्याधरो जेना चरणोने वंदे छे तेवा. संसारतारक तीर्थ करोनां त्रिभुवन-स्थित चैत्यभवनोने वंदन करे छे; पछी क्रपथी सौधर्म, इशानकल्प, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लांतक, शुक्र सहस्रार, आणत, प्राणत, आरण, अच्युत, निम्न-मध्यम-उच्च एम त्रणे ग्रेवेयक अने अनुत्तरना मळो सघळा देवलोकमा रहेका चोराशी लाख सत्ताणु हजार ने वेवीश जिनभवनोने वंदन करे छे. (१-७)
ते पछी भवनपति, अनुरकुमार, वायुकुमार, नागकुमार, द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार, अग्निकुमार, ए सौ देवोनां भवनोमां रहेलां सात करोड बोतेर लाख जैन चैत्योने वंदन करे छे. (८-११).
त्यारबाद नंदीश्वरद्वीप, कुंडलगिरि, रुचकगिरि, मानुषोत्तर अने इषुकार पर्वत, मेरुशिखर, गजदन्त पर्वत, कुरुद्रम, वक्षष्कार पर्वत अने वैताढ्य पर्वत, तिर्यकलोक. ज्योतीष अने व्यंतर लोकनां जिन चैत्योनी संख्या गणावी लोकमां रहेला कुल आठ कोटि छप्पन लाख सत्ताणु हजार बसो ने ब्यासी जिनभवनोनी वंदना करे छे. (१२-२०)
पछी भरत चक्रवत्तिए अष्टापद पर्वत पर रचावेल चतुर्विशति जिनालयने नमस्कार करी कविए भरत क्षेत्रनां प्रसिद्ध जैन तीर्थो गणान्या छे:' यथा __सम्मेतशिखर, शत्रुजय, उज्जयन्त (गिरनार), अर्बुद (आबु), चित्रकूट (चित्तोड), जाबालिपुर (जालोर), गोपाल गरि (ग्वालिअर), मथुरा (इतिहासप्रसिद्ध महास्तूर), राजगृही, चंपा, पावापुरी, अयोध्या, कंपिल्ल (कांपिल्यपुर), हस्तिनापुर, भद्दिलपुर, शौरीपुर, अंगदिका, कनोज, श्रावस्ति दुर्ग, वाराणसी इत्यादि पूर्वदेशना अने कम्मग (?), सिरोही (?) वगेरे भयाण देश (बयाना १) नां जिनचैत्योने वंदन करे छे. (२१-२५). _____ए पछी राजपुर, कुंडणी, गजपुर (हस्तिनापुर), पंचवाडा (१), तलवाडा, देवराउर (?) इत्यादि उत्तरदेशनां; ने खडिल, डिंड्आणा, नराणा, हर्षपुर, खट्ट (खेटक, खेड), मेडता, नागपुर (नागोर), शुद्धदंति वगेरे संभरिदेश (सांभर)नां; पाली, संडेराव, नाणा, कोरटा, भिन्नमाल इत्यादि गूर्जरदेशनां; आघाटादि मेवाडनां; अकेश (ओसियां), किराडू (किराटकूप), विजयपुर ( विजय कोट ), आदि मरुदेशनां; ने सांचोर (सत्यपुर) , गुड्डर (?) वगेरे पश्चिमदेशनां, तीर्थोने वंदे छे. (२६-२९),
ते पछी थारापद्र (थराद), वायड, जालीधर (जाल्योधर), नगर (वडनगर), खेड (खेटक), मोढेरा, अणहिलवाड (पाटण), चंद्रावती अने बंभाण (वरमाण-ब्रह्माण), ने त्यारबाद कलिकाल मळनो नाश करनार, सकल व्याधिने दूर करनार, अतिशययुक्त, स्थंभनपुरनिवासी (थांभणाना) पार्श्वनाथने भक्तिपूर्वक प्रणाम करे छे. (३०-३१). १. आमानां शक्य तेटलां नामो "जैन-तीर्थ-सर्व-संग्रह" भा० १ थी ३, (प्रका. आणंदजी
कल्याणजी, अमदाबाद,१९५३) ना आधारे आपेल छे.
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