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________________ सफलतार्थस्तोत्र ९.? तत्पश्चात् कच्छ, भरुच, सोरठ, महाराष्ट्र, कोंकण, कलिकुंड, मानखेडा 'इत्यादि दक्षिग देशमा, मालवदेशस्थ धारानगरी, उज्जैन, अने छेवटे सर्व देशोमां रहेलां मनुष्यनिर्मित जिनभवनोने वंदना दे छे (३२-३३). ___ आ रीते भरत, ऐरावत अने महाविदेह आदि क्षेत्रोमा रहेला असंख्यात तीर्थोने वंदन करी कवि समापन करे छे. (३४-३६). __३५मी गाथामां 'साहारण' (साधारण) शब्दथी कवि पोतार्नु उपनाम श्लेषद्वारा सूचवे छे अने अंतिम कडीमा पोतानु सिद्वसेनसूरे नाम स्पष्ट आपे छे. ए बे संकेत-सूचना द्वारा ए निश्चित थाय छे के स्तोत्रकर्ता कवि 'सोधारण' उपनामथी प्रसिद्ध एवा 'विलासवई'कार सिद्धसेनसूरि ज छे. . सकल -तीर्थ-स्तोत्र संसार-तारयाणं तियसासुर-खयर-वंदिय-कमाणं । तित्थयराणं तिहुयण-चेइय-भवणे नमसामि ॥१॥ बत्तीस-पय-सहस्सा जिणभवणाणं नमामि सोहम्मे । अट्ठावीसं लक्खा वंदे ईसाणकप्पम्मि ॥२॥ बारस सणंकुमारे लक्खा वंदामि अट्ठ माहिदे । । चत्तारि बंभलोए सासय-जिणनाह-भवणाई ॥३॥ पण्णास-सहस्साई लंतयकप्पम्मि भावओ वंदे । चत्तालीसं सुक्के छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥४॥ आणय-पाणयकप्पे दोसु वि दो दो सयाई वंदामि ।। आरण-अच्चुयकप्पे सयं दिवड्दं दिवड्दं तु ॥५॥ एगारमुत्तर-सयं हिट्ठिम-गेविज्जगेसु वंदामि ।। सत्तुत्तरं च मज्झे सयमेगं उवरिमे कैप्पे ॥६॥ पंचेव अणुत्तगई एवं वंदामि उड्ढ लोगम्मि । तेवीस सत्तनउइ-सहसा चुलसी य लक्खाइं ॥७॥ भवणवईणं मज्झे असुरकुमारेसु लक्ख चउसट्ठी। चुलसीइ सय-सहस्सा वाउकुमारेसु वंदामि ॥८॥ बावत्तरि च लक्खा जिण-भवणाणं सुवण्ण-भवणेसुः । छण्णवइ-सय-सहस्सा नागकुमारेसु वंदामि ॥९॥ . दीव-दिसा-उदहीणं विज्जुकुमारिंद-थणिय-अग्गीणं । बावत्तरि बावत्तरि लक्खा छण्णं पि वंदामि ॥१०॥ १३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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