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सागरमल जैन
thods are neither methods of proof nor methods of discovery. (p.266-67) वस्तुतः कोई भी अनुभवात्मक पद्धति जो निरीक्षग या प्रयोग पर आधारित होगी एक अधिक युक्तिसंगत प्राक्कल्पना से अधिक कुछ नहीं प्रदान कर सकती है। हम तो अनुभववाद की इस अक्षमता को बहुत पहिले ही प्रकट कर चुका था, अतः पाश्चात्य तर्क शास्त्र में आगमनात्मक कुदान Inductive Leap की जो समस्या अभी भी बनी हुई है उसे भी जैन दर्शन के इस तर्क प्रमाण की अन्तःप्रज्ञात्मक पद्धति के आलोक में सुलझाने का एक प्रयास अवश्य किया जा सकता है। वस्तुतः आगमन के क्षेत्र में विशेष में सामान्य की ओर जाने के लिए जिस आगमनात्मक कुदान की आवश्यकता होतो है, तर्क उसी का प्रतीक है। वह विशेष सामन्य के बीच की खाई के लिए एक पुल का काम करता है, जिसके माध्यम से हम प्रत्यश्च से व्याप्ति ज्ञान की ओर तथा विशेष से सामान्य की ओर बढ़ सकते हैं।
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