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मध्यकालीन गुजराती साहित्यनां हास्य-कथानको
साथे गाडु पण उपाडी गयो. आनु साटु वाळवा गामडियाए सपात्रदान माग्यु ने साथवं आपवा आवेली ए धूर्त शेठनो पत्नीने पण साथे खेंची जवा लाग्यो.२°आवश्यकचूर्णी (पृ. ५५१)मां आवी अन्य कथा छे. बे मित्रोने छूगे खजानो मळतां एक स्थाने छुपाव्यो. एक जणनी दानत बगडता खजानो काढी लीधो ने कोलसा भरी का, 'आपणा दुर्भाग्ये कोलसा थई गया.' पेलो मनमा समसमी गयो ने 'जैसे-को तैसा' जेवो तोड काव्यो. पेलाना पुत्रने जमवा बोलावी छपावी दीधो अने कह्य', 'ए तो मूर्ति बनी गयो.' पेलो बोल्यो, 'अरे माणस ते कई मूर्ति बने ?' 'हा' पेलाए क्ह्यु, 'जेम धननो कोलसो बने.' आवश्यकचूर्णी (पृ. ५२३-२४)मां एक कथानक आ प्रमाणे छे :
शरत प्रमाणे एक माणस आखी रात ठंडापाणीमां रह्यो. एणे दीवो जोई टाढ उडाडी. एवं बहानु आगळ करी शरत प्रमाणे पैसा न आप्या. छेतरायेला मित्रे एने जमवा निमंत्र्यो ने पाणी मागतां लोटो देखाड्यो. पेलो बोल्यो, ‘एम कई लोटो जोये तरस छीपे ?' 'हास्तो' छेतरायेलाए जवाब आप्यो, 'जेम दीवो जोये टाढ ऊडे.'
___ अहीं, डॉ. ह. चू. भायाणीए 'टगारु मागणुं अने ठगारी चूकवणी'नां कथानको चा" छे. ते पण सांकळी शकाय.
धूतारानी वातो एटली तो व्यापक छे के प्रवासे जता पतिने पत्नी के पुत्रने पिता अमुक तमुक गाममा जतां सावध रहेवानी सूचना आपे. आ सलाह साथे पण धर्तनी कोई कथा मळे अने प्रवासी प्रवासमां ठगाय त्यारेय पाछी वार्ता मळे. आ रीते फसावनार कोई धर्त होय, वेश्या होय के पछी आखं गाम पण होय. वसुदेव ज्यारे भद्रिलपुर पहोंच्या त्यारे अंशुमाने ठगथी बचवा का' ने धम्मिलने पण वंचकोथी बचवानी सलाह मळी. अन्यथा तो बधाने छेतरती फरती वेश्या पंदरमी सदीमां रचायेला रत्नचूडरासमां धूतारा नगरीमा फसायेला रत्नचडने उगारी ले छे.२२ शामळनी सिं. ब. नी १८मी वहाणनी वार्तामां पण धूतारा नगरी छे. डॉ. भायाणी लखे छे, 'आगळ जतां मध्यकालीन कथासाहित्यमां कटाहद्वाप धूसारा नगरीनु प्रतीक बनी रहे छे धूतारानगरी ए लोककथानी घणी जाणीती कथायुक्ति छे. तेवी नगरीना बधा प्रजाजनो, अधिकारीओ, कोटवाल, न्यायाधीश, प्रधान अने गजाओ ए सौ ठगारा होय अने युक्ति प्रयुक्ति अने कूडकपटथी तेओ परदेशीओने फसावे अने तेमनु बधु हरी ले. आ रीतर्नु निरूपण घणी मध्यकालीन कथाओमां मळे छे. आवो नगरी तरीके केटलीक कथाओमां कटाहद्वीपनो उपयोग थयो छे अने तेनु नाम ज 'कूटकटाह' पडी गयु छे. स्त्री-चरित्र
पुरुषनी अन्य व्यक्तिओने छेतरवानी कुन्ह धूर्तकथामां निरूपाय छे तेम शिथिल चारित्र्यवाळी ने चातुर्यथी पतिने के अन्यने छेतरनारी स्त्रीओनां कथानको स्त्रीचरित्रमा आलेखायां छे कयु चरित चडे-स्त्रीचरित के पुरुषचरित्र एवो प्रश्न पण कथासाहित्यनी एक राजसभामा २४ उठावायो. छे ने एमां स्त्रीचरित्र चडियातु सिद्ध थाय छे. संस्कृत शुकसप्तति, शामळकृत शुकब२० वसुदेव हिंडी-भाषान्तरकार डॉ. सांडेसरा पृ. ५७-५८ २१ शोध अने स्वाध्याय -पृ. २२४ थी २३४ २२-२३ अनुसंधान पृ०५०-५२ २४ श्री नयसुंदर विरचित रूपचंद कुंवर रास-आ.का.म. औ.६ मां
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