SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ हसु याज्ञिक गोखलामां रतिने हाथताळी दई हसतां कामदेवना हास्यनुं कारण पूछतां धनपाले कह्युं, 'त्रिभुवनमां जेनो संयम प्रख्यात छे एवा आ शंकर हवे विरहथी भय पामीने स्त्रीने पोताना शरीरमां धारण करे छे. तेथी - आ शंकरे मने जित्यो हतो- एम कहेतां हसवु आव्युं छे एवो प्रियाना हाथमां पोताना हाथथी ताळी आपनार कामदेव जय पामे छे. ( पृ०८६ ) कोई एक परिस्थितिनुं कारण स्पष्ट करतां चमत्कारमूलक पद्य प्रश्नोत्तर समस्यानो एक प्रकार छे. शिवनी अर्धनारीश्वरनी मूर्ति अने कामदहनना प्रसंगना विरोधने एक साथे सांकळीने कामदेवता हास्यमां अन्य संप्रदाय प्रत्येनी प्रच्छन्न उपहासलीला होवा छतां सूक्ष्मताने कारणे स्मित फरकावे एवं छे नटपुत्र रोहक बुद्धिप्रतिभाथी अशक्य लागता कार्यने कुनेहथी पूरुं करता चतुर पुरुषोनां पात्रोमा बौद्धधाराना महाउम्मगजातक ( ५४६ ) ना महौषधनुं तथा जैनधारामां नटपुत्र भस्त रोहक अने अभयकुमारनं पात्र नोंवा जेवां छे. आवश्यकचूर्णी, निर्युक्ति, उपदेशपद इत्यादिमां भरत रोहकना अशक्यने बुद्धिबळे शक्य बनावतां कार्यो आलेखायां छे. सोंपेला घेटानु वजन न वधवा देवु के न घटवा देवु, हाथी मृत्यु पामे तो पण मृत्यु पाम्यो छे एम क्यारेय न कहेवु छतां एना साचा समाचार तो मोकलवा ज न तडको न छांयो, न दिवस न रात, न वाहन न पागपाळा, न उडी न रस्तावगर प्रवास करी राजाने मळवा आववुं वगेरे शरतो रोहक बुद्धिबळे पाळे छ. आ कथा ओमां अद्भुत आश्चर्यनो अहोभाव अनुभवाय छे एटलु हास्य नथी. धूर्तथा मूर्ख अने चतुर जेटलं महत्त्व प्राचीन अने मध्यकालीन कथासाहित्यमां विट अने धूर्तोनुं छे. चोर, डाकू के लूटारा करतां विट अने धूर्त विशिष्ट ए रीते छे के तेओ बहु सहेलाथी संस्कारी सज्जन तरीके गोठवाईने गमे तेवाने छेतरी ले छे. अंग्रेजी राज्यअमल सुधी अस्तित्व धरावता फांसिया ठगनी संस्थाना पूर्वजो ते आ विट अने धूर्त. चतुर्भाणी अंतगंत ईश्वररदत्तकृत 'धूर्तविटसंवाद' मां कहेवामां आव्यु छे के पाटलिपुत्रना राजमार्गों विटथी ऊभराता हता. भरतमुनिए विटने वेश्योपचार कुशल, मधुरभाषी, सभ्यं वाक्पटु को छे. तो क्षेमेन्द्र क्षीण, गुगहीन, सदोष कलासंपन्न अने कुटिल कही नमस्कार करे छे. विट, चेट, डिंडिक ने धूर्त पैकी संस्कृत भाणमां थयो छे. वेश्यावाडामां गयेथे विट आकाशभाषितथी वेश्याओनी कामक्रीडानी वातो कहेतो होय छे. धूर्त अने चोरने आवुं वण कथासाहित्यमा मळ्यां. धूर्त कथाओ जूनामां जूनु संपादन आचार्य हरिभद्रसूरि ( ई. स. ७००-७८० ) - कृत प्राकृत धूर्ताख्यान छे. आ विषयनी सर्वप्रथम कृति आथी पण आगळ होवानुं डॉ. भायाणी जणावे छे. संस्कृत, प्राकृत, पालि अने अपभ्रंश जेवी भाषाओमां प्रचलित कथानकोनां मूळ तो प्राचीन होय ज. इन्द्रसौभाग्यकृत (सं. १७९२ ) धूर्ताख्यान प्रबंधनी नोध श्री. मो. द. देशाइए" करेली छे. १३ शोध अने स्वाध्याय, डाँ. भायाणी पृ० २८ १४ जैन गुर्जर कविओ भाग - ३, खंड-२, पृ० ११९४ Jain Education International कवि, चतुर अने कृष्णपक्षना चंद्र जेवो विटनो विशेष उपयोग अनेक व्यक्तिओ जोडे महत्त्वनुं स्थान अने For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy