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________________ ३२ हसु याज्ञिक विनोदकथा संग्रह मूखकथा- मुग्धकथा के अडवाना पराक्रमोरूपे जेम कोई खासियत के जडताने कारणे निष्पन्न थती परिस्थिति हसावे छे तेम कोई वाद के संप्रदायनी जडता ने सामान्य टीखळ पण हसावे छे. चौदमा सैकाना मलधारी राजशेखरसूरिए आवा कथानकोनो संग्रह 'विनोद कथा संग्रह' मां को छे. चुस्त शिवभक्तने परिस्थितिवश हरि अने हरनी संयुक्त मूर्ति पूजवानी थई. अंगोछं ढांकी एणे मात्र शिवने स्नान कराव्यु, हथेळी दाबी शिवना कपोल पर त्रिपुंड कयु ने. शिवमस्तके पुष्पो चडाव्यां. दीवो करी धूप देवानु थयु त्यारे विष्णुए विचायु 'हवे कयां जशे ? एनी अनीच्छा छतां हूं धूपदीप पामीश'. परन्तु पेलो शिवभक्त वधारे होशियार नीकळ्यो. धूपदीप करी एणे हरिनां आंख अने नाकमां पोतानी आंगळी बोसी दोधी. अहीं २६मी कथा भरडक बत्रीशीना शिष्यनी याद अपावे एवी छे. गुरुना काननी बहेगश दूर करवानी दवा लेवा एक शिष्य वैद्यना घरे गयो. वैद्यनो मोटो छोकगे नानाने भणावतो हतो, पण नानो छोकरो रमतियाळ होई अभ्यासमा ध्यान आपतो न हतो. मोटा पुत्रे पिताने फरियाद करी, 'आ सांभळतो नथी'. वैद्य गा, 'सांभळे शु नहीं ? एक लपडाक ठठाड.' ने मोटा छोकराए नानाने खेवीने तमाचो मार्यो. शिष्यने दवा मळी गई. एणे ए नुस्खो गुरुनी बहेराश दूर करवा कामे लगाडयो. ३०मी कथा व्यवहारज्ञानविहीन पोथी-पंडितोनी छे. भरटकद्वात्रिंशिकामां पण आने मळतुज कथानक छे. आ पेटनंनां कथानकमां 'पंचतन्त्र' मां आवतु चार मूर्ख पंडितोनु कथानक जाणीतुं छे. चार रस्ता आवतां 'महाजनो 'जाय ए रस्ते जq ने अनुमरी डाघुभो पाछल स्माशानमां गया, 'उत्सव, दुःख, दुष्काळ, आपत्ति, राजद्वार ने स्मशाने साथे ऊभो रहे ते मित्र' ते न्याये गधेडाने मित्र मान्यो, 'धर्मनी त्वरित गति' ऊंटमां निहाळी गधेडाने ऊंटनी डोके बांध्यो ने धोबी, मारवा पाछळ पडयो त्यारे नदीमा पड्यांनी आखी हारमळा फार्स जेवी ज सीच्युएशन सजें छे. विनोद चोत्रीशी कथा _ 'भरडक बत्रीशी रास ना कर्ता मुनि हरजीए" सं १६४१मां 'विनोद चोत्रीशी कथा' रचो छे. हास्यनी जबे कृतिओ आपनार मुनि हरजीने मध्यकालीन गुजराती साहित्यनो हास्य-लेखक कहेवो जोईए. अहों हास्यरमूजनां ३४ कथानको मळे छे. कविने मन हास्यकथा शंगार, वीर ने अदभूतने विषय करती कथाओ करतां पण विशेष छे. वसुधामां जांणो सही, अनेक संबंध अपार शुकबहोत्तरी कथा अछि, नीतिशास्त्र वली जाणि कथा वली वेतालनी, भारथ कथा वखांणि--११ सिंहासण-बत्रीसी जोई, अनेक अवर कथा वली होई विनोदकथा सरखी को नही, जे सुणतां सुख उपजि सही-१२ अन्य वार्ताना संपादक करतां हास्यकथाना संगदकनो श्रम विशेष फळे छे ते मुनि हरजी जाणे छः १. जैन गूर्जर कविओ-भाग-३, खंड-१ पृ. ४१२ तथा 'नवचेतन' दिवाळी अंक, नवे. डिसे. . १९६०, सळग अंक ५७२-७३ मां डॉ. सांडेसरानो लेख. ११ जैन गुर्जर कविओ भाग-३, खंड-१ पृ० ७१३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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